गुच्छे से जुदा अंगूर की क़ीमत नहीं होती
मिलजुलकर रहने में ही ग़ीबत नहीं होती,
गुच्छे से जुदा अंगूर की क़ीमत नहीं होती।
हुस्ने दौलत भी बेकार है आदमी के पास,
जब तक अच्छी पास में सीरत नहीं होती।
अगर एक मन से सबका साथ हुआ होता,
तेरे किसी क़ानून की फ़ज़ीहत नहीं होती।
दिलों को बांटने में जिसकी उम्र गुज़र गई,
ऐसे किसी शख्स की अक़ीदत नहीं होती।
कुछ उसके पास भी रहते हैं अच्छे शख़्स,
वरना तो सांस लेने में ग़नीमत नहीं होती।
मेरा नाम भी होता पत्थर फैंकने वालों में,
अगर मेरे ज़हन में भी शरीअत नहीं होती।
भगीरथ की मेहनत में रंग ना भरते अगर,
ये गंगा कभी मुल्क़ की ज़ीनत नहीं होती।
अपनो की, परायों की पहचान नहीं होती,
अगर लोगों के बीच में मुसीबत नहीं होती।
ज़फ़र दुश्मन को ज़मींदोज़ कर देता अगर,
मेरे मन में मां-बाप की वसीयत नहीं होती।
शब्दार्थ
ग़ीबत — बुराई
सीरत —- व्यवहार
फ़ज़ीहत— दुर्दशा
अक़ीदत — सम्मान
ग़नीमत — संतोषजनक