स्वामी विवेकानंद की जयंती

स्वामी विवेकानन्द

Swami Vivekananda Jayanti : स्वामी विवेकानंद की जयंती Swami Vivekananda Birth Anniversary 2019 – स्वामी विवेकानन्द (जन्म- 12 जनवरी, 1863, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता), भारत; मृत्यु- 4 जुलाई, 1902, रामकृष्ण मठ, बेलूर) एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान थे। विवेकानन्द जी का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, जो कि आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द के नाम से विख्यात हुए। रोमा रोलाँ ने नरेन्द्रदत्त (भावी विवेकानन्द) के
स्वामी विवेकानन्द
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सम्बन्ध में ठीक कहा है- ‘उनका बचपन और युवावस्था के बीच का काल योरोप के पुनरूज्जीवन-युग के किसी कलाकार राजपुत्र के जीवन-प्रभात का स्मरण दिलाता है।’ बचपन से ही नरेन्द्र में आध्यात्मिक पिपासा थी। सन्1884 में पिता की मृत्यु के पश्चात्त परिवार के भरण-पोषण का भार भी उन्हीं पर पड़ा। स्वामी विवेकानन्द ग़रीब परिवार के थे। नरेन्द्र का विवाह नहीं हुआ था। दुर्बल आर्थिक स्थिति में स्वयं भूखे रहकर अतिथियों के सत्कार की गौरव-गाथा उनके जीवन का उज्ज्वल अध्याय है। नरेन्द्र की प्रतिभा अपूर्व थी। उन्होंने बचपन में ही दर्शनशास्र का अध्ययन किया। ब्रह्मसमाज में भी वे गये, पर वहाँ उनकी जिज्ञासा शान्त न हुई। प्रखर बुद्धि साधना में समाधान न पाकर नास्तिक हो चली।16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता से 1879 में एंट्रेस की परीक्षा पास की। अपने शिक्षा काल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे। किन्तु हर्बर्ट स्पेंसर (HERBERT SPENCER) के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। उन्होंने से स्नातक उपाधि प्राप्त की और ब्रह्म समाज में शामिल हुए, जो हिन्दू धर्म में सुधार लाने तथा उसे आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा था।

उनका मानना है “जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो – उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो – वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।”
आखिर वह कौन सी चीज है जो मृत्यु के बाद भी बची रहती है ?
विवेकानंद ने लिखा- ”सबसे पहला विचार यह है जब व्यक्ति मरता है वह नष्ट नहीं होता। कुछ चीज जीती है तथा
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व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् भी जीवित रहती है।”

विवेकानंद का मानना है – ”इस तरह से वेदान्त,चाहे हम इसे जानें या न जानें,भारत में सभी सम्प्रदायों में प्रवेश कर गया है।”
विवेकानंद का मानना है- ”जिसे हम हिन्दू धर्म कहते हैं… वह वेदान्त के प्रभाव द्वारा समूचा व्याख्यायित हुआ है।चाहे हम इससे अनभिज्ञ हों या नहीं .हम वेदान्त में सोचते हैं,वेदान्त में रहते हैं,वेदान्त में साँस लेते हैं तथा वेदान्त में हम मृत्यु प्राप्त करते हैं,और प्रत्येक हिन्दू यह करता है।”
उनका मानना है “जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो – उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो – वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।”



– जगदीश्वर चतुर्वेदी 

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