पारिस्थितिकीय अनुक्रमण – परिभाषा, प्रकार और प्रक्रिया

Paristhitiki Anukraman : अनुक्रमण (Succession) की अवधारणा सर्वप्रथम वार्मिंग और क्लिमेण्ट्स द्वारा दी गई थी। अनुक्रमण सैकडों या हजारों वर्षों में वानस्पतिक समुदायों की रचना और आकार में आने वाली विभिन्नताओं को व्यक्त करता है। समुदाय और पर्यावरण में पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप जो परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, उससे क्रमश: एक समुदाय दूसरे समुदाय के द्वारा प्रतिस्थापित (Replace) होता रहता है।

लम्बी अवधि के बाद अनुक्रमण की गति मन्द पड़ने लगती है और अन्ततः एक ऐसे समदाय का आगमन होता है, जो वहाँ के भौतिक पर्यावरण के साथ गतिक सन्तुलन (Dynamic Balance) स्थापित करता है और इसके माध्यम से पर्यावरण को परिवर्तित होने से रोक लेता है। इस प्रकार के सन्तुलन को स्थापित करने वाले समुदाय को चरम समुदाय (Climax Community) कहते हैं। इसके पूर्व के सभी बदलते हुए समुदायों को क्रमकी समुदाय (Seral Community) कहा जाता है।

सर्वप्रथम स्थापित समुदाय को नवीन समुदाय (Pioneer Community) कहते हैं। इस प्रकार देखें तो अनुक्रमण नवीन समुदाय से प्रारम्भ होकर क्रमकी समुदायों द्वारा आगे बढ़ते हुए चरम समुदाय पर समाप्त होता है।

अनुक्रमण के क्रम में समुदायों को प्रावस्थाएं, जो एक के बाद दूसरे के द्वारा प्रतिस्थापित होती हैं, उसे क्रमक (Sere) कहते हैं। चरम समुदाय स्थायी होता है तथा जाति रचना में कोई परिवर्तन तब तक नहीं दर्शाता है, जब तक कि पर्यावरणीय स्थिति में कोई बदलाव न आ जाए।

पारिस्थितकीय अनुक्रमण के प्रकार

क्लिमेण्ट्स ने पारिस्थितिकीय अनुक्रम को दो भागों में बाँटा है-

  1. प्राथमिक अनुक्रम
  2. द्वितीयक अनुक्रम।

1. प्राथमिक अनुक्रम

इसके अन्तर्गत उन क्षेत्रों में विभिन्न क्रमको (Sere) में वनस्पति समुदाय के विकास को सम्मिलित करते हैं, जहाँ सर्वप्रथम किसी भी पौधे या प्राणी का जनन एवं विकास नहीं हुआ हो।

प्राथमिक अनुक्रम (Primary Succession) निम्न स्थानों व परिस्थितियों में होता है। जैसे-

  1. नवीन लावा प्रवाह (Lava Flow) तथा उसक शीतलन द्वारा नवीन घरातल का निर्माण,
  2. हिममण्डित क्षेत्रों से हिम के पिघल जाने के कारण शैलों के अनावरण वाला भाग,
  3. झील के जल के सूख जान पर शुष्क झील का तल वाला भाग,
  4. सागरीय तली के उन्मज्जन (Emergence) के कारण,
  5. नवनिर्मित उन्मज्जित सागरीय द्वीप, नवीन बालुस्कातूप (Sand Dunes) का निर्माण
  6. नदी द्वारा नवीन कॉप (Alluvia) के निक्षेपण से निर्मित बाढ़ मैदान,
  7. मानव द्वारा खनन कार्य (खनिजों का) के दौरान मलवा के ढेर वाला भाग आदि।

Prathamik Paristhitiki Anukraman

 

2. द्वितीयक अनुक्रम

किसी क्षेत्र में जब प्राथमिक अनुक्रमण से उत्पन्न जैव समुदाय का किन्हीं कारणों से विनाश हो जाता है, तो द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession) द्वारा उस क्षेत्र में नवीन जैव समुदाय विकसित होता है। द्वितीयक अनुक्रमण का कारण मानवीय हस्तक्षेपों (जैसे- वनों का काटना या जलाना, झूमिंग कृषि सड़क निर्माण आदि) द्वारा या प्राकृतिक कारकों (जैसे- बाढ़, हरिकेन, सूखा, भूस्खलन, जलवायु परिवर्तन) द्वारा प्राथमिक जैव समुदाय का विनाश होता है।

पारिस्थितिकीय अनुक्रमण के कारक

पारिस्थितिक तन्त्र में वनस्पति समुदाय का विकास निम्न कारकों द्वारा प्रभावित व नियन्त्रित होता है-

  • जलवायु कारक (Climate Factor)– किसी प्रदेश के पादप के लिए उस प्रदेश की वृहद-स्तरीय जलवायु (Macro Climate) का उतना महत्त्व नहीं होता, जितना कि उस
    जलवायु (Micro Climate) का महत्त्व होता है।
  • जैविक कारक (Biotic Factor)– जीवित पौधों का स्थान विशेष पौधों पर पड़ने वाला प्रभाव, मख्य रूप से प्राणी तथा मानव का प्रभाव।
  • भौतिक कारक (Physical Factor)– धरातल का स्वरूप, ऊँचाई, ढाल (Slope) आदि का स्थानीय पादपों पर पड़ने वाला प्रभाव।
  • मृदीय कारक (Soil Factor)– स्थान विशेष की मिट्टियों के पौधों के लिए महत्त्व रखने वाले गुण तथा पोषक तत्त्व (Nutrients), मृदा-गठन (Soil Composition), मृदा संरचना आदि।

अनुक्रमण की प्रक्रिया

क्लिमेण्ट्स (Clements) ने वर्ष 1916 में अनुक्रम की निम्नलिखित प्रक्रियाओं का वर्णन किया है-

न्यूडेशन

नवीन समुदाय के आगमन के लिए खाली स्थान प्रदान करने की प्रक्रिया न्यूडेशन (Nudation) कहलाती है। सामान्यतया पायोनीयर जातियों में वृद्धि दर अधिक होती है, लेकिन उनकी जीवन अवधि कम होती है।

आक्रमण

बाहर से अनेक नई जातियों का अनुक्रमण के क्षेत्रों में अनाधिकृत प्रवेश आक्रमण (Invasion) कहलाता है इस प्रक्रिया में निकट के क्षेत्रों से प्रकीर्णन के विभिन्न माध्यमों से फलों या बीजों की अनेक प्रजातियों का नवीन स्थान पर पहुंचकर अंकुरित होना आस्थापन (Ecesis) कहलाता है।

स्पर्द्धा

जब किसी क्षेत्र में समुदायों का एकत्रीकरण हो जाता है, तब वहाँ स्थान तथा संसाधनों पर दबाव अधिक बढ़ जाता है। इस कारण यहाँ अन्तर्जातीय तथा अन्तर्राजातीय प्रतिस्पर्धा होने लगती है। सफल प्रतियोगी शीघ्र ही वहाँ के पर्यावरण के साथ अनुकूलन स्थापित कर लेते हैं और कुछ समुचित परिवर्तन का प्रयास करते हैं।

प्रतिक्रिया

इस चरण में जैविक तथा अजैविक दोनों घटकों के मध्य प्रतिक्रिया (Reaction) शुरू हो जाती है। पर्यावरण में निरन्तर होने वाला परिवर्तन इसी का प्रतिफल (Result) है।

चरम अवस्था

यह अनुक्रमण की प्रक्रिया की सबसे अन्तिम अर्थात् चरम अवस्था (Climax Stage) होती है, जहाँ जैविक समुदाय पर्यावरण से काफी स्वस्थ सामंजस्य अथवा अनुकूलन स्थापित कर लेते हैं। यह अवस्था पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological Balance) के लिए आवश्यक है।

“क्लिमेण्ट्स के अनुसार, चरम अवस्था की स्थापना में जलवायु का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।”

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