अकेली बुढ़िया
Ek Akeli Budhiya
मोरक्को में एक गरीब बुढ़िया रहती थी .उसकी कोई संतान नहीं थी .वह अक्सर सोचा करती – यदि मेरे भी फूल जैसे बच्चे होते ,तो कितना अच्छा होता .
एक गरीब बुढ़िया |
उसी शहर में एक बुढा आदमी रहता था. बुढ़िया का दुःख देखकर उस आदमी को भी तरस आ गया .उसने बुढ़िया को एक टोकरी दी और कहा – इस टोकरी में अपने बाग़ के खजूर भर देना .
बुढ़िया जैसे – जैसे बाग़ में लगे खजूर के पेड़ के पास गयी .खजूर तोड़कर उसने टोकरी भरी ,फिर टोकरी को घर के अन्दर रखकर बाज़ार चली गयी .बाज़ार से लौटी तो बुढ़िया के आश्चर्य का ठिकाना न रहा .उसका पूरा घर बच्चों से भरा था .बुढ़िया बहुत खुश हुई .अन्दर घुसते ही सारे बच्चों ने उसे प्रणाम किया .बुढ़िया ने सबको आशीर्वाद दिया .खजूर की टोकरी खाली पड़ी थी .
बुढ़िया के खाली जीवन में बहार आ गयी थी .छोटे बच्चे – दादी माँ ! दादी माँ ! कहते उसका पीछा न छोड़ते .
एक दिन बुढ़िया की तबियत ख़राब थी ,मगर सारे बच्चे खून शोरगुल करते रहे .बुढ़िया ने कायो बार उन्हें मना किया ,परन्तु वे न माने तो बुढ़िया को गुस्सा आ गया और वह बोली – मैं तो अकेली ही अच्छी थी .कम से कम चैन से सो तो सकती थी .अच्छा होता ,तुम जहाँ से आये थे ,वही चले जाते .
अचानक सारे बच्चे गायब हो गए . बुढ़िया का घर पहले की तरह सुनसान हो गया .बुढ़िया को अपने किये पर बहुत पछतावा था .उसने सोचा – टोकरी में दुबारा खजूर भरकर रखूँ तो शायद बच्चे लौट आयें .
वह टोकरी लेकर खजूर के पेड़ के पास पहुँची. अचानक खजूर के पेड़ में हजारों आँखें उग गयीं .वे सब गुस्से से बुढ़िया को घूर रही थी .बुढ़िया डरकर घर के अन्दर चली गयी . उसके बाद उसको किसी ने नहीं देखा .