अहसास अजीब सा

अहसास अजीब सा

     

धड़ाम.. धड़ाम.. किसी चीज के गिरने की आवाज |माँ ने दौड़कर झटपट कमरे में देखा कोई नहीं था |सामने लगी घड़ी पर निगाहें गयीं रात के दो बजकर कुछ सेकण्ड हुए थे |माँ लौटकर अपने कमरे में सो गयी |सुबह आँख खुली फिर से धड़ाम सबको चौंका दिया |
अशोक बाबू माहौर
अशोक बाबू माहौर

        

माँ ने कमरे में झाँका सारा आटा बिखरा पड़ा |बर्तन भी उल्टे पुल्टे नाच रहे |ऐसा लग रहा रात भर यहाँ चूहे बिल्ली की घमासान कुश्ती हुई है और इसी दौरान चूहे की मौत भी हुई |
         
माँ ने बेटे रोहित को बुलाकर कमरा साफ करवाया |चूहे बिल्ली के न आने के कुछ इंतजाम भी करवाए ताकि सुकून मिल सके |
         
दूसरे दिन माँ को नींद नहीं आयी |रात उठते बैठते निकल गयी | अचानक खिड़की पर रखा गिलास  उछल कूद करता हुआ माँ के कदमों में जा लुढ़का | शायद हवा की शरारत थी क्योंकि खिड़की पर लगे परदे, अभी भी हिल रहे |
– अशोक बाबू माहौर
मुरैना (मप्र)

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