अज्ञेय प्रयोगवाद के जनक | अज्ञेय और प्रयोगवाद

अज्ञेय प्रयोगवाद के जनक अज्ञेय और प्रयोगवाद

ज्ञेय और प्रयोगवाद अज्ञेय और प्रयोगवाद और नई कविता प्रयोगवाद और अज्ञेय तारसप्तक Mahakavi Agyey प्रयोगवाद अज्ञेय कवि – प्रयोग का अर्थ होता है नयी बात कहना अथवा किसी पुरानी बात को नए ढंग से कहना। इस प्रकार युग विशेष की आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुरूप काव्य रचना को प्रयोगशील कहा जाएगा। प्रयोगवाद शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन १९४६ ई में शमशेर बहादुर सिंह द्वारा नया साहित्य में प्रकाशित तार सप्तक की आलोचना में हुआ। 

तार सप्तक के कवि इन हिंदी

प्रयोगवाद के प्रवर्तक होने का श्रेय अज्ञेय को ही प्राप्त है। सन १९४३ में उन्होंने सात प्रयोगवादी कवियों की रचनाएँ तार सप्तक १ में प्रकाशित हुई जिसमें अज्ञेय ने प्रयोगवाद के समर्थन में एक भूमिका भी लिखी। उसमें अज्ञेय सहित जिन अन्य कवियों की रचनाएँ उनके वक्तव्य सहित संकलित हैं ,वे हैं – मुक्तिबोध ,नेमीचंद ,भारत भूषण अग्रवाल ,प्रभाकर माचवे ,गिरिजाकुमार माथुर और डॉ.रामविलास शर्मा। 
तार सप्तक २ अज्ञेय जी ने सन १९५१ में प्रकाशित कराया जिसमें भी सात कवियों की रचनाएँ उनके वक्तव्य सहित प्रकाशित हैं। ये कवि हैं – भवानीप्रसाद मिश्र ,शकुन्तला माथुर ,हरिनारायण व्यास ,शमशेर बहादुर सिंह ,नरेश मेहता ,रघुवीर सहाय और धर्मवीर भारती। 
सन १९५९ में तीसरा तार सप्तक प्रकाश में आया। इसमें भी सात कवियों की रचनाएँ उनके वक्तव्य सहित प्रकाश में आई। ये कवि हैं – प्रयाग नारायण त्रिपाठी ,मदन वात्सायन ,केदारनाथ सिंह ,कुंवर नारायण ,विजयदेव नारायण साही ,सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और कीर्ति चौधरी। 
अतः यह माना जाता है कि तार सप्तकों के माध्यम से प्रयोगवाद को गति प्रदान करने का श्रेय अज्ञेय को ही प्राप्त है।

प्रयोगवाद का प्रवर्तन 

अज्ञेय द्वारा प्रयोगवाद का प्रवर्तन मात्र तार सप्तकों के संपादन ,प्रकाशन तक ही सिमित नहीं हैं ,उन्होंने अपने विभिन्न वक्तव्यों द्वारा प्रयोगवादी काव्य के लिए उपयुक्त मानसिक पृष्ठभूमि भी उत्पन्न करने की चेष्टा की है। सच तो

अज्ञेय प्रयोगवाद के जनक | अज्ञेय और प्रयोगवाद

यह है कि उस काल में अज्ञेय के वक्तव्य सार गर्भित ,संयत तथा संतुलित है। प्रयोगवादी काव्य के विभिन्न तत्वों को स्पष्टापूर्वक उन्होंने उपस्थित किया है ,कतिपय संकेत यहाँ आवश्यक है  – 

  • ये सातों अन्वेषी है – उनके तो एकत्र होने का कारण ही यही है कि वे किसी एक स्कूल के नहीं है ,किसी एक मंजिल पर पहुँचे हुए नहीं है। 
  • जो व्यक्ति का अनुभूत है उसे समष्टि तक कैसे उसकी पूर्णता में पहुँचाया जाय ,यह पहली समस्या है जो प्रयोगशीलता को ललकारती है। 
  • साधारणीकरण का नया अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा – जब चमत्कारिक अर्थ मर जाता है और अभिधेय बन जाता है ,तब उस शब्द से रागोत्तेजक शक्ति भी क्षीण हो जाती है। उस शब्द से रागात्मक सम्बन्ध स्थापित होता है। कवि तक उस अर्थ की प्रतिपत्ति करता है जिससे पुनः राग का संचार हो ,पुनः रागात्मक सम्बन्ध स्थापित हो साधारणीकरण का अर्थ यही है। 
काव्य सृजन के द्वारा भी अज्ञेय ने प्रयोगवाद को गति और दिशा प्रदान की है। उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह है – भग्नदूत ,इत्यलम ,हरी घास पर क्षण भर ,बावरा अहेरी ,इन्द्रधनुष रोंदे हुए थे,अरी ओ करुणा प्रभामय ,आँगन के पार द्वार ,कितनी नावों में कितनी बार और सुनहरी शैवाल। 

अज्ञेय प्रयोगवादी काव्यधारा के जनक

प्रयोगवादी नूतन काव्यधारा में प्रयोग को ही एक मात्र साध्य माना गया है ,पुरानी परम्पराओं को निष्क्रिय घोषित किया गया है ,पुरानी उपलब्धियों को निरर्थक बताया गया है ,कविता को जनजीवन से उत्पान मानकर नगर के वातावरण अथवा शहरी परिवेशों से अद्भूत स्वीकार किया गया है ,जीवन के साथ साथ शब्दकोष को भी कच्चा माल माना गया है। अज्ञेय को ही प्रयोगवाद का जनक और उन्नायक माना जा सकता है क्योंकि उन्होंने ही अपने सहित बीस नए कवियों को प्रकाश में लाने का पुनीत कार्य कार्य किया। डॉ.द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार – इस तरह अज्ञेय एक नूतन विचारधारा को लेकार चलने वाले कवि की नहीं ,अपितु नूतन काव्यधारा को चलाने वाले कतिपय अन्वेषी कवियों को हिंदी पाठकों के सम्मुख लाकर खड़े कर देने वाले कवि नेता भी है। साथ ही अज्ञेय ने ही प्रयोगवादी नयी कविता और नए कवियों की पृष्ठभूमि तैयार की है ,उन्हें हिंदी काव्य क्षेत्र में पदार्पण करने की लिए प्रेरणा दी है और उनकी बारीकियों ,मान्यताओं एवं उपलब्धियां की वकालत की है तथा एक जज के रूप में निर्णय देते हुए उनका मूल्यांकन भी किया है। अतः अज्ञेय न केवल प्रयोगवादी नूतन काव्यधारा के एक यशस्वी कवि है ,अपितु इस धारा के कवियों को प्रकाश में लाने वाले ,उन्हें नूतनता की ओर प्रेरित करने वाले ,उनके लिए काव्य भूमि तैयार करने वाले ,उनकी उपलब्धियों से हिंदी पाठकों को अवगत कराने वाले ,उनकी मान्यताओं की वकालत करने वाले तथा छायावाद एवं प्रगतिवाद पर आक्रमण करने वाले ,नूतन वस्तु एवं नूतन शिल्प दृष्टि संपन्न इस नूतन प्रयोगवादी काव्यधारा के पुरोहित एवं प्रवर्तक ही नहीं ,अपितु कवि ,वकील और जज भी हैं तथा इन तीनों गुणों से अभिभूत होने के कारण अज्ञेय इस प्रयोगवादी काव्यधारा में प्रवर्तक स्थान के अधिकारी हैं।  

You May Also Like