अपनी अनुभूतियों के पंख पसारे
बहुत दिनों से
दिल की धडकनों को
मैंने नहीं सुना..
मैं एक पल भी ठहर नहीं पाती
किसी मुसाफिर की तरह
जहाँ समय की धूप-छाँव मे
अपने जज्बात
विचारो के फिसलन पडाव मे
घुल-मिलकर
निचुड/सँवरकर
अपनी अनुभूतियों के पंख पसारे…
तारीखों का मतलब रहा
एहसासों से कोरे
पन्ने पलटते कलेंडर
अगामी कार्य-कलापों की
तयशुदा रूपरेखा!!
अपने शब्दों में
करूण -रस ,मासूमियत
और दर्द की टिस
परखती हूं मैं दुविधा मे
बस आलोचय दृष्टि से
वक्त के चलन को
उपयोगिता के कसौटी पर
जाँचती हूं मैं
अपनी स्थिति को भाँँपते
अब जबकी एक मुकम्मल ठहराव
लगभग नामुमकिन-सा है
दिल में एक हूक -सी उठी है
उखडा-बिगड़ा मन
नयी गलिया ,नया चलन ढूँढता हैं
मदहोश हो जाने को
उनकी नजर में चमक जाने को
कई विस्यमकारी कीमत चुकाने को
हाँ शायद
मैं ताक मेंं रही सदा
चाहे जो तूफान उठे
बवंडर मचे
मैं ढूंढ़ लू खुद के लिये
एक सुरक्षित ,संरक्षित मकाम
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@ अर्चना श्रीवास्तव