ईश्वर का न्याय

ईश्वर का न्याय 

वह एक BLO था।BLO यानि बूथ लेवल ऑफिसर । उसकी सीनियर अधिकारी अपने विभाग की तहसील स्तर की सर्वोच्च अधिकारी थी।BLO का काम अपने मजरे के अन्तर्गत आने वाले मतदाताओ का सत्यापन,मतो को बढाने व मृतक मतदाताओ के नाम वोटर लिस्ट से हटाने का होता है। यू तो उसके पूर्ववर्तियो ने अपना काम बडी लापरवाही से किया था और उसको विरासत मे अनियमितताओ से भरी हुयी वोटरलिस्ट मिली थी ,लेकिन वह अपना काम बडी गम्भीरता से लेता था ।
    
आज उसकी उच्चाधिकारी ने आगे आने वाले वाले चुनावो की तैयारियो के मद्देनजर रखते हुये एक बैठक बुलायी थी।बैठक मे ऐसे BLO को तलब किया गया था जिनके काम मे कुछ लापरवाही देखी गयी थी।यो तो उसकी खुद की नजर मे उसके कार्य मे कोई कमी नही थी लेकिन उसकी मतदाता सूची मे कुछ ऐसे मतदाताओ के नाम भी थे जिनके फोटो बहुत ही धुन्धले थे और दिखाई नही देते थे। इन फोटो को प्रमाणित करवाने के लिये विभाग की ओर से आदेश भी दिये गये थे परन्तु उसकी सूचना उसे नही मिल पायी थी । संभवतः ऐसा उसके बाहर जाने के कारण हुआ था।
   
आज उसकी इसी गलती को लेकर उसकी उच्चाधिकारी ने सभी 400 BLO के सामने खचाखच भरे मीटिन्ग हाल मे बेइज्जत किया,उसको कामचोर,नमूना और न जाने क्या क्या कहा। उसके बारे मे सबके सामने कहा,” कि ऐसे ऐसे नमूने हमारे विभाग मे है कि जिनसे अच्छे काम की उम्मीद करना बेमानी है “।
ईश्वर का न्याय
ईश्वर का न्याय 

40 वर्ष की उम्र तक संभवतः उसकी ऐसी बेइज्जती पहली बार हुयी थी। मीटिग हाल से घर पंहुचते पंहुचते न जाने कितने नकारात्मक ख्याल उसके जेहन मे आते रहे। घर पंहुचकर बिना किसी को कुछ बताये चुपचाप अपने कमरे मे जाकर लेट गया। बीबी ने खाने को पूछा तो बोला कि भूख नही है।रात के 10 बजे तक वह चुपचाप सोचते हुये लेटा रहा।रह रहकर उसको अपने साथियो के सामने अपनी ब्इज्जती का ख्याल आ रहा था। अगले दिन सुबह अपने साथियो से कैसे आन्ख मिलायेगा ये सोचते सोचते वह रोने लगा था।
अन्तर्द्वन्द मे भटकते भटकते उसने सोचा कि जब समर्पण के साथ काम करने से भी प्रशंसा के स्थान पर प्रताडना मिले तो क्या फायदा ऐसी नौकरी से, लेकिन बिना नौकरी के जीवन उसे बेमानी लगा। आत्महत्या के विचार उसे मन मे आने लगे थे।आधी रात होते होते कब ये विचार निश्चय मे बदल गये इसकी किसी को खबर न थी।सुबह हुयी तो लोगो ने उसे खत के कुन्डे से लटका हुआ पाया।
उसने ऐसा कदम क्यो उठाया इस बात की जानकारी किसी को नही थी सिवाय उसके सहकर्मियो के लेकिन सच का पता चलने पर भी उसके घरवालो ने उस महिला अधिकारी के रसूख से टकराने की हिम्मत नही की बस अपने भाग्य को कोसकर चुप हो गये क्योकि वह एक आर्थिक मध्यमवर्गीय परिवार था।
        
अब इस घटना को 27  साल बीत चुके थे।  उत्तर भारत के एक बडे शहर मे एक नौजवान नागरिक सेवा की तैयारी करते करते अपने चयन से कुछ ही दूर था। अपने शीलगुणो,सकारात्मकता,आत्मविश्वास,निष्ठा व लगन आदि गुणो से लबरेज उस नौजवान को अपने चयन पर पूर्ण विश्वास था और हुआ भी ऐसा ही। नतीजे आने पर वह उच्च रैन्क के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अन्तर्गत चयनित हो गया।
वह महिला अधिकारी अब प्रोन्नति पाकर एक जिलाधिकारी के पद पर कार्यरत थी।  उम्र बढने के साथ इमानदारी का चस्का कम होकर दौलत रुतबा शौहरत पाने की चाहत अब उस महिला अधिकारी के अन्दर हिलोरे मारती थी।जिलाधिकारी रहते हुये अवैध रूप से खनन,निविदा आवंटन मे अनियमितताए,व अनुदान आदि की राशि का गबन जैसे भ्रष्ट कार्यो मे उसकी संलिप्तता थी।शासन सत्ता मे परिवर्तन के साथ ही कुछ समय बाद पूर्ववर्ती सरकार के पसंद के अधिकारियो के स्थानान्तरण के साथ -साथ  उनके कार्यो की जाचे भी नयी सरकार द्वारा करायी जाने लगी।
कलेक्टर साहिबा के भ्रष्ट कार्यो की भी जाच हुयी एवं सच सामने आया। कलेक्टर साहिबा के यहा छापे के दौरान लगभग 300 करोड की नकदी, एवं गहने पाये गये ,अचल संपत्ति थी सो अलग जिसमे कयी शहरो मे उनके बंगले, होटल व कालेज भी थे।कलेक्टर साहिबा ने सरकारी राशि का जो गबन किया उसकी जाच के लिये जो समिति बनायी गयी उस समिति का अध्यक्ष विभाग का सचिव बनाया गया ये सचिव उसी BLO का पुत्र था जिसने 30 वर्ष पहले इन्ही साहिबा के हाथो अपमानित होकर आत्महत्या की थी।
              
कहते है इतिहास अपने आप को दोहराता है।आज जाच समिति के सामने कलेक्टर साहिबा को पेश होना था।शाम के समय कलेक्टर साहिबा समिति के सामने उपस्थित हुयी।समिति ने उनसे सवाल जबाव करना शुरू किया। कुछ ही सवालो के बाद कलेक्टर साहिबा निरुत्तर हो गयी।समिति ने अपनी रिपोर्ट विभाग को सौप दी। कलेक्टर साहिबा दोषी पायी गयी थी।इस घटना के बाद कलेक्टर साहिबा की खूब बेइज्जती हुयी।उनकी खबरे समचार पत्रो,न्यूज चैनलो मे छायी हुयी थी।
इस सब के बाद कलेक्टर  साहिबा डिप्रेशन मे चली गयी व कुछ समय बाद उन्होने आत्महत्या कर ली।प्रकृति ने एक मासूम मौत का बदला 30 साल बाद लिया था लेकिन हैरत की बात थी कि इस सब की जानकारी न उस BLO के सचिव बेटे को थी और न ही कलेक्टर साहिबा को।ये सारी कहानी उस सचिव बेटे को अपने एक अधीनस्थ कर्मचारी से पता चली जो उसके BLO पिता के साथ सहकर्मी था।
सारी बात पता चलने पर उस युवा प्रशासनिक अधिकारी की ईश्वर पर आस्था और दृढ हो गयी व ईश्वरीय न्याय पर उसका विश्वास और अटल हो गया।
     

– आलोक कुमार शुक्ला (स्वप्निल)
दियोरिया कला,पीलीभीत

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