उफ्फ ! तक नही निकलती
उफ्फ!तक नही निकलती
और आह भी
नही भर सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे,
और आह भी
नही भर सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे,
हम कुछ भी नही कर सकते।
श्रद्धा मिश्रा |
ये फैसले फ़ासलों के
लेना कौन चाहता है,
ये बोझ मासूम कंधो पे
ढोना कौन चाहता है।
लेना कौन चाहता है,
ये बोझ मासूम कंधो पे
ढोना कौन चाहता है।
सबको मरना है एक दिन
फिर भी खुद मर नही सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे
हम कुछ भी कर नही सकते।
फिर भी खुद मर नही सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे
हम कुछ भी कर नही सकते।
आओ
दो पल को ही सही
एक लम्हा
साथ गुजार लें,
हमसे हो गयी है
अनजाने में
वो सब गलतियां सुधार लें।
दो पल को ही सही
एक लम्हा
साथ गुजार लें,
हमसे हो गयी है
अनजाने में
वो सब गलतियां सुधार लें।
आँखो में है आंसू बहुत
मगर ये छर नही सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे
हम कुछ भी कर नही सकते।
मगर ये छर नही सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे
हम कुछ भी कर नही सकते।
मेरी खुशियों में
सब साथ थे,
मेरे गम में
कौन
गमगीन है,
मैने हँस के
अपनी परेशानियों
का सामना करूँ,
ये जुर्म बहुत संगीन है।
सब साथ थे,
मेरे गम में
कौन
गमगीन है,
मैने हँस के
अपनी परेशानियों
का सामना करूँ,
ये जुर्म बहुत संगीन है।
बहुत डराती है मुश्किलें मुझे भी
मगर क्या करें डर नही सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे
हम कुछ भी कर नही सकते।
मगर क्या करें डर नही सकते,
जिंदगी कुछ भी करती रहे
हम कुछ भी कर नही सकते।
रचनाकार परिचय
श्रद्धा मिश्रा
शिक्षा-जे०आर०एफ(हिंदी साहित्य)
वर्तमान-डिग्री कॉलेज में कार्यरत
पता-शान्तिपुरम,फाफामऊ, इलाहाबाद