ऊँट और सियार

ऊँट और सियार

ओमी ऊँट और सोनू सियार की दोस्ती पूरे ताजपुर जंगल में मशहूर थी। दोनों एक साथ खाते, पीते और रहते थे।
ऊँट और सियार

उनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती थी की इनकी जैसी दोस्ती किसी की नही हो सकती।  लेकिन सारा जंगल दबी आवाज में ये भी कहता था कि सोनू सियार बहुत चालक है और वो कभी भी ओमी ऊँट को धोखा दे सकता है । उनका कहना ठीक भी था इसलिए की सोनू हमेशा से ही ओमी ऊँट की शराफत का फायदा उठता रहता था । एक दिन शाम का समय था। हल्की बूंदाबांदी हो रही थी।  सोनू सियार ने ओमी ऊँट को उसके घर के बाहर आवाज दी। ओमी बाहर आया तो सोनू ने उसे कुछ खाना खाने की बात कही। ओमी ने कहा ठीक है आओ बाहर कुछ खा पी कर आये।  दोनों बाहर खाना खाने चल दिए। उन्हें जंगल ने कुछ ना मिला । सोनू सियार ने कहा कि आओ इंसानों की बस्ती में चलते है वहाँ कुछ ना कुछ मिलेगा। ओमी ऊँट ने मना किया लेकिन सोनू सियार उसे जबर्दस्ती अपने साथ लेकर चल दिया।

एक गांव में पहुँच कर सोनू सियार ने एक घर के बाड़े में मुर्गियां देखी। वो उसी तरफ गया और मुर्गियों को खाने लगा। लेकिन ओमी ऊँट को कुछ भी खाने को नही मिला। उसने मुर्गी खा रहे सोनू सियार को ये बात बताई। सोनू सियार ने कहा-ओमी जो कुछ मिलता है खा लो। काफी देर ढूंढने पर ओमी को बाड़े में कुछ घास दिखाई दी वह उसी को खाने लगा तब तक सोनू सियार अपना खाना खत्म कर चुका था। उसने घास खाते ओमी ऊँट से कहा – यार ओमी मुझे खाना खाने के बाद हिचकी लेने का मन कर रहा है और तुम्हे पता है कि में जब तक हिचकी नही लूँगा मेरा खाना पचेगा नही। ओमी ऊँट बोला- सोनू ऐसा मत करो मैंने अभी खाना नही खाया है थोड़ी देर रूक हम यहाँ से निकल कर जंगल में जाएंगे वहां पर हिचकी ले लेना क्योंकि यदि तुम यहाँ हिचकी लोगे तो उसे सुन कर इस घर का मालिक आ जाएगा और हमे बहुत मारेगा। लेकिन सोनू सियार नही माना और उसने मुहँ से आवाज निकाल कर हिचकी लेनी शुरू की तो उसकी आवाज सुन कर उस घर का मालिक डंडा लेकर आया। ये देख कर सोनू सियार तो फुर्ती से भाग खड़ा हुआ और क्योंकि ओमी ऊँट धीरे चलता था तो उसे घर के मालिक ने बहुत मारा। घायल ओमी ऊँट बड़ी मुश्किल से लड़खड़ाता हुआ जंगल पहुंचा। उसकी हालत देख कर सोनू सियार हँसने लगा। ओमी ऊँट को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वो चुप रहा। 
कुछ दिन बाद दवाई लेने से ओमी ऊँट के पिटाई के घाव भर गए लेकिन वो सोनू सियार की उस हरकत को नही भूला। समय बीता और एक दिन फिर शाम को सोनू सियार बोला-यार ओमी आओ आज फिर बाहर कुछ खाने चलें। इसपर ओमी बोला- लेकिन आज गांव की तरफ नही घने जंगल में चलेंगे क्योंकि तुम उस दिन की तरह मुझे फिर किसी गाँव वाले से पिटवा दोगे। सोनू ने कुटिल मुस्कुराहट दी। उसने घने जंगल में चलने को हामी भर दी। दोनों घने जंगल में पहुंचे। इस बार जंगल ने ओमी ऊँट को खूब खाना मिला लेकिन सोनू सियार को खाना नही मिला। सोनू सियार परेशान हो गया। तभी ओमी ऊँट को अपनी ऊँचाई के कारण एक ऊँचे पेड़ पर कुछ अंडे दिखाई दिए। उसने सोनू सियार को बताया। लेकिन सीनू सियार बोला वह बहुत ऊंचाई पर है में कैसे वहाँ तक पहुँचूं? ओमी ऊँट बोला -तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ और फिर में खड़ा हो जाऊं तो तुम मेरी पीठ पर बैठे बैठे उस पेड़ से अंडे खा लेना। सोनू सियार को बात जंची। वो तुरंत ओमी ऊँट की पीठ पर बैठा और फिर ओमी खड़ा हुआ तो वो आसानी से उस पेड़ पर रखे अण्डों तक पहुँच गया । उसने एक अंडा ही खाया था कि ओमी ऊँट बोला- सोनू यार मुझे लौटनी आ रही है और तुम्हे पता है कि लौटनी के बिना मेरा खाना नही पचता तुम्हारी तरह,लेकिन लौटनी से पहले में पूरा हिलूंगा ताकि मेरा शरीर लौटनी के लिये हल्का हो जाए। सोनू बोला -यार ओमी थोड़ी देर रूक जा में खाना खा लूं उसके बाद हिल लेना। लेकिन ओमी ऊँट बोला – जैसे तुम उस दिन नही रूक पा रहे थे ऐसे ही में नही रूक पा रहा। इतना कहते ही उसने अपना शरीर जोर से हिलाया तो सोनू सियार धड़ाम से ओमी ऊँट की पीठ से गिरा और उसकी हड्डी पसली टूट गई। ओमी ऊँट ने अपना बदला ले लिया था। उस दिन के बाद से ओमी ने सोनू सियार के साथ रहना बंद कर दिया।

यह रचना राजेश मेहरा जी द्वारा लिखी गयी है।  आप ,नई दिल्ली से हैं तथा  मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं । आपको , बच्चो की कहानियां, लेख और कवितायेँ लिखने का शौक है।

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