साठ का आदमी – सतीशचन्द्र

सतीशचन्द्र श्रीवास्तव

आदमी की उम्र जब हो जाती है साठ
जिन्दगी पढ़ाती है उसे एक नया पाठ
कल तक था जिनका साथ
छूटने लगता है आज उनका हाथ
आदमी जब हो जाता है साठ का
सुनाने का बहुत रहता है उसके पास
पर सुनने को नही रहता कोई पास
एक लम्बी उम्रका घटा जमा
पीढ़ी की दरार में जाता है समा
उम्र के पठार पर खड़ा है
साठ की उम्र का आदमी
अपनी तृप्त अतृप्त इच्छाओं के
साथ है साठ का आदमी
ऑखों में अब नींद है  सपनें
बेगाने हो गए सारे अपनें
आदमी जब साठ का होता है
रह जाता है बस थोड़ा टहलना
और थोड़ी बड़बड़ाहट।

यह रचना सतीशचन्द्र श्रीवास्तव जी , द्वारा लिखी गयी है . आप रेल प्रबंधक कार्यालय , इलाहाबाद में कार्यरत है . आपकी विभिन्न राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . सतीश चन्द्र जी , स्वंतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है


You May Also Like