किसकी भूल ?

किसकी भूल ?

आज पराक्रम बड़ा खुश था | खुश क्यों न हो उसके पुत्र पुनीत को इंजिनियर की जानी मानी कॉलेज में दाखिला मिल गया | उसे हमेशा चिंता रहती थी कि पुनीत पढ़ पाएगा या नहीं क्योंकि पुनीत अपनी पढ़ाई के लिए हमेशा लापरवाह रहा है | उसे याद आता है कैसे जब परीक्षाएँ होती थी तो वो आराम से सोया रहता | परीक्षा उसकी, चिंता माता-पिता  को | किसी तरह उसने स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और ऐसे -तैसे कर माता-पिता दोनों ने

 छात्रावास
 छात्रावास

मिलकर उसकी  प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाई | अच्छे-से अच्छा कोचिंग में उसका दाखिला करवाया | पराक्रम की आय बहुत ज्यादा न थी किन्तु उसकी इच्छा थी कि जिस प्रकार से वह दिन-रात कड़ी मेहनत कर बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करता है उसके बच्चे मेहनत तो करें लेकिन फल भी अच्छा पाएँ |
     पराक्रम ने पुनीत के छात्रावास में रहने हेतु सारी तैयारी स्वयं खड़े रहकर करवाई | पुनीत भी बड़ा प्रसन्न था बस उसे दुःख था तो घर से दूर रहने का | लेकिन पुनीत की माँ ने उसे समझाया  “कुछ पाने  के लिए कुछ खोना पड़ता है|” माँ तथा पिता के सपनों को पूरा करने के लिए पुनीत ने छात्रावास में रहने का मन कर लिया और मुम्बई से चेन्नई रवाना हो गया |
    पुनीत को  माता-पिता दोनों छोड़ने गए | छात्रावास और कॉलेज का वातावरण देखकर दोनों अभिभावक प्रसन्न हुए | दो दिन पुनीत के साथ रहकर वे पुन: अपने घर मुंबई लौट आए | पुनीत की माँ का मन थोडा कम ही लग रहा था | पुनीत की माँ पुनीत को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी | पुनीत कभी भी अपनी तकलीफ़ बाँटता नहीं था,यदि वह बीमार होता तो माँ को ही उसका चेहरा देखकर समझना पड़ता था वह कभी नहीं कहता था कि उसे कोई तकलीफ़ है | पुनीत की माँ को सबसे अधिक यही चिंता खाए जा रही थी | भूख लगेगी तो क्या वह खाना खाएगा या  भूखा रह जाएगा वहाँ कौन उससे  कहेगा ? कौन पूछेगा ? आदि | ऐसी बातों को सोचकर वह थोड़ी परेशान हो रही थी लेकिन मन को समझा भी रही थी कि “उसने  ये कदम उसकी भलाई के लिए उठाया है |”
     देखते ही देखते दो साल गुजर गए | पुनीत में लेशमात्र परिवर्तन हुआ | अभी भी वह बात करने से शरमाता है | बीमार हो तो कहता नहीं है | बस अकेले सफ़र करने लग गया और अपनी पढ़ाई करने लग गया | हाँ उत्तीर्ण होते रहने से मैं यही समझ रहा हूँ |
   कल मैं थोडा चिंतित हुआ | मैंने जब उससे बात की तब वह मुझसे कहने लगा कि “अब वह छात्रावास में नहीं रहेगा अलग कमरा लेकर रहेगा |” पराक्रम ने उसे मना कर दिया और उसे समझाया “नहीं यदि तुम छात्रावास में रहते हो तो अधिक सुरक्षित हो |” पिता का समझाना पुनीत को समझ नहीं आया | और उसने जो सोचा वह कर लिया | उसने कॉलेज के पास ही एक कमरा किराए पर लिया और उसके चार साथी के साथ वह उस कमरे में रहने लगा | क्या करे आजकल के बच्चे सोचते है कि वे अधिक समझदार है | माता-पिता उनकी परेशानी को समझते नहीं है | वे जो समझते है,जो करते है – वही सही है | अभिभावक अपने अनुभव के आधार पर कहते है कि “बच्चा तेरे लिए ये ठीक नहीं है |” लेकिन बच्चों को न सुनना है न सुनेंगे |
    पुनीत अपने कमरे में बड़े मजे से रहने लगा | दोस्तों के साथ बाहर खाने जाना | कमरे की साफ-सफ़ाई,खुद का सुबह का चाय-नाश्ता तैयार करना आदि कामों के कारण अक्सर उसे कॉलेज में पहुँचने में देर हो जाती | कई बार अध्यापकगण उसे सजा देते और उसकी कक्षा नहीं हो पाती | धीरे-धीरे वह कॉलेज जाने में आनाकानी करने लगा और इसका प्रभाव उसकी पढ़ाई पर होने लगा | इंटरनल परीक्षा का  परिणाम अब अनुत्तीर्ण में आने लगा | क्योंकि अब उसे बोलने वाला कोई न था , वह अपने मन का राजा था | मन में आता जब उठता और मन में आता जहाँ जाता | एक साल उसका अपनी मनमानी में बीता | वार्षिक परीक्षा दी और उसका परिणाम जब घोषित हुआ तो अनुत्तीर्ण | इन छुट्टियों में वह मुम्बई आया हुआ था | अपने परिणाम को लेकर वह थोडा चिंतित हुआ और उदास रहने लगा | पराक्रम ने उसकी ये हालत देखी तो उसने पुनीत से बात करने का निर्णय लिया | उसे अपने पास बैठाया | जब से वह पराक्रम के मन के खिलाफ कमरा लेकर रहने लगा पराक्रम उससे कम ही बोलने लगा था | लेकिन आज उसकी ऐसी हालत देखकर उसे दया आ गई और वह पुनीत से पूछने लगा          
“ क्या बात है बेटा ? बड़े खोए-खोए हो |”
पुनीत ने कहा “नहीं तो कुछ नहीं |”
“फिर उदास क्यों हो ?”
“मैं फेल हो गया हूँ |”
“कोई बात नहीं | ये निर्णय तुम्हारा ही तो था |”
पुनीत आश्चर्य से पिता की ओर देखने लगा |
पिता ने कहा – “ यही वजह थी कि हम चाहते थे कि तुम छात्रावास में रहों | वहाँ तुम्हे सिर्फ अपने-आपको तैयार करने तक का ही काम करना होता है | इस वजह से तुम अपनी पढ़ाई पर अच्छे-से फोकस कर सकते हो | वो तो अच्छा हुआ जो तुम गलत सांगत में नहीं पड़े वरना अपनी जिंदगी से भी हाथ धोना पड़ सकता था |”
पुनीत को पिता की बात समझ में आ रही थी और वह सोच रहा था कि आखिर यहाँ गलती किसकी ?
यदि मैं अपने माता-पिता का कहना मान लेता तो शायद आज मेरा एक साल बर्बाद न होता |
पिता ने उसकी गंभीर मुद्रा देखकर उससे कहा “कोई बात नहीं यदि सुबह का भुला शाम को घर लौट आए तो उसे भुला नहीं कहते |”

यह रचना जयश्री जाजू जी द्वारा लिखी गयी है . आप अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं . आप कहानियाँ व कविताएँ आदि लिखती हैं . 

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