कॉलेज थिएटर हाउस नहीं है

कॉलेज थिएटर हाउस नहीं है

                 
कॉलेज किसी भी कीमत पर विद्यार्थियों के लिए मनोरंजन स्थल अथवा राजनीतिक मंच नहीं हो सकते। अगर वे गुरुओं का सम्मान स्वच्छता अपना कक्षा और सौंपा गया काम नहीं कर सकते तब उनको मटरगश्ती या पढ़ाई के प्रति गंभीर रुचि नहीं है तो उन्हें कॉलेज कैंपस मेंनहीं आना चाहिए। अगर आज के माहौल में गुरु शिष्य परंपरा
कॉलेज
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का क्षरण हो रहा है तो इसका प्रमुख कारण शेक्सपियर के शब्दों को याद करते हुए कहू तो” लंबे समय तक संबंधों में खटास से गर्मजोशी नहीं रहती ” यह एक प्रमुख कारण रहा है और अन्य कारणों में न कल धन देना और राजनीतिक प्रभाव रहे है। स्वेच्छा चारी दुष्ट और आलसी युवाओं को माहौल बिगाड़ने नहीं आने देना चाहिए। मुझे इस संदर्भ में सुनी गई कहानी याद आती है के गुरु जी भविष्यवाणी करने में माहिर थे और एक दुष्ट शिष्य ने एक बार उनकी भी परीक्षा लेनी चाहिए और दोनों हथेलियों के बीच चिड़िया का एक छोटा बच्चा रख लिया और गुरु जी से यह पूछने लगा के गुरु जी इन हथेलियों में क्या है गुरुजी का जवाब था केस में चिड़िया का बच्चा है तब दूसरा प्रश्न में उसने किया कि क्या यह जिंदा है अथवा मरा है, उसकी मंशा यह थी कि अगर गुरु जी कहते हैं यह जिंदा है तो वह उसे धीरे से भेज देगा और वह मरा हुआ निकलेगा अगर वह कहते हैं कि मरा है तो वह फिर से उसको दिखा देगा कि यह जिंदा है और आप की भविष्यवाणियां गलत है। इसी तरह की और अन्य हरकतों से अध्यापक को सदैव सचेत रहना चाहिए।

विद्यार्थियों के लिए काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च अल्पाहारी ग्रह त्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणम।आज युग बदल रहा है इंडक्टिव मेथड और डिडक्टिव मेथड से आगे स्मार्ट क्लासरूम ई अध्ययन बुक रीडर वर्चुअल क्लासरूम तक अध्ययन शाला में पहुंच चुकी है और समय के साथ तालमेल करना आना चाहिए। बदलते समय के अनुसार ही पाठ्य सामग्री का पुनरावलोकन और आधुनिक जरूरत के अनुसार परिवर्तन होना चाहिए। यद्यपि कानून विद्यालयों में अनुशासन के लिए बहुत हैं परंतु उनका पालन नहीं होता है इसके प्रमुख कारण जानकारी का अभाव अथवा जानकारी के प्रति उपेक्षा हो सकती है। अभी हाल में ही एक माह पहले मेडिकल कॉलेज लखनऊ में सिर मुंडन अथवा सिर नीचा करके बच्चे घुमाए गए थे। अभी घर असामाजिक और गैर कानूनी काम है इसके लिए रैगिंग विरोधी कानून पहले से है दुष्ट और कृतिम विद्यार्थी इन्हीं स्थितियों में सरल और सच्चे विद्यार्थियों का शोषण करने लग जाते हैं।
विद्यार्थियों को जो अध्यापक गण कक्षा में पढ़ाते हैं उनका नोट अपनी कॉपी पर वही याददाश्त के लिए उतार लेना चाहिए और बेहतर हो कि वह गाइड और गुणों से अपने सवाल हल ना करें जो कुंजी और गाइड बुक्स में कभी कभी जो सामग्री मिलती है वह पक्षपात पूर्ण भी होती है अपूर्ण भी होती है और उसमें एनालिटिकल कंटेंट विश्लेषणात्मक सामग्री का अभाव रहता है .यद्यपि पत्राचार पाठ्यक्रम भी नियमित विद्यालयों के माध्यम के रूप में उभरे हैं और दूरस्थ विद्यालय विदेशी सहयोग से प्रारंभ हो चुके हैं इससे भी आगे वर्चुअल क्लासरूम भी आ गए हैं और सेल्फ स्टडी ग्रुप और वाईफाई और ऑनलाइन चीजें अध्ययन में भी प्रारंभ हो चुकी हैं। जहां नियमित विद्यालय हैं और नियमित कक्षाएं होती हैं कम से कम उन कक्षाओं में अध्ययन पठन-पाठन भली-भांति हो और वह अड्डे बाजी का शिकार ना हो इसके लिए अध्यापकों को विशेष ध्यान रखना चाहिए मेरे कहने का आशय यह है के छात्र समुदाय में जो गंदगी व्याप्त है लेकिन अमूमन अदृश्य सी लगती है उससे बहुत लंबे समय तक अध्यापक वर्ग को अनजान और उपेक्षित छोड़कर काम समाज का नहीं बनने वाला है। अध्यापन ही एक ऐसा पेशा है जो जज डॉक्टर के बाद अति सम्मानित कोटि में आता है।  इसके साथ न्याय करने के लिए अध्यापकों को संकीर्ण सोच व्यक्तिगत मान्यताओं और राजनीतिक दृष्टिकोण से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। विद्यार्थियों को कंप्यूटर प्रवीण होना चाहिए और समाज और राष्ट्र के हित को सर्वोच्च मानकर केवल अध्याय अध्ययन करने चाहिए।
अध्यापक भी एक तरह से विद्यार्थी ही होता है और उसके नोट्स डेजर्ट एक्शन और शोध पत्र मौलिक होने चाहिए और अनावश्यक रूप से रेफरेंसिंग नहीं देने चाहिए रेफरेंस वही देने चाहिए जो कि आप ने पढ़े हो और आपके संदर्भित लेख में वह संगत है और इस लेख का समाज को पाठक को और राष्ट्र के लिए एक संदेश हो। शिक्षण संस्थानों में अमूमन राज्य का कोई ज्यादा हस्तक्षेप नहीं होता है और इन शिक्षण संस्थानों के ऊपर भाषाई, अस्मिता की और सांस्कृतिक संरक्षणकी जिम्मेदारी होती है। देश कोई ईंट और गारे का बना नहीं होता यह इस में रहने वाले लोगों से ही बनता है जिनके कल्याण जिनकी संरक्षण की पूरी जिम्मेदारी एक राज्य की होती है.यह भी याद रखें कि सूचना अपने आप में कोई ज्ञान नहीं है फेसबुक जोके मार्क जुकरबर्ग ने एक एप्लीकेशन बनाई है यह एप्लीकेशन कोई इंवेंशन नहीं है यह मात्र एक मेला है।
शिक्षा का अर्थ व्यवहारिक समझदारी आम जीवन में स्व और पर के परमार्थ के लिए ज्ञानार्जन और जीवन यापन योग्य अन्नादी थन उपार्जन करना है। इसी देव को लेकर युवक विद्यार्जन में लगे तो देश का बहुत भला होगा।
संपर्क  – क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17  शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001

मो  9411858774    ( kpsharma05@gmail.com )

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