कोई दस्तक ना दे मेरी हसरतों के दर पर

मुझे आता नहीं है कुंडी खोलने का हुनर

पने ईमान में बे-ईमानी घोलने का हुनर,
अच्छा नहीं बिल्कुल कम तोलने का हुनर।
कोई दस्तक ना दे मेरी हसरतों के दर पर,
मुझे आता नहीं है कुण्डी खोलने का हुनर।
मैंने बच्चों को सस्ती छुट्टियां नहीं पिलाई

मैं वकील बन गया हूं और बात है लेकिन,

सीखा नहीं अब तक झूठ बोलने का हुनर।
किसकी मज़ाल बुरी निगाह बनके छू सके,
अगर आता है तुम्हें दुपट्टा ओढ़ने का हुनर।
इतना भी नहीं है कि एक उमर गुज़र जाए,
ये माना कि अच्छी बात है सोचने का हुनर।
इतनी कहां बिसात थी पहाड़ी फतेह करले,
फलफूल गया मीडिया के कोसने का हुनर।
ज़फ़र के पास नहीं छल-कपट की तालीम,
शहंशाह से सीखो इल्ज़ाम थोपने का हुनर।

आप ऐसे जीत का परचम लगाना सीखिए

आप ऐसे जीत का परचम लगाना सीखिए,
दूसरों के ज़ख्म पर मरहम लगाना सीखिए।
रेत से गाड़ी का पहिया भी निकल जाएगा,
हौंसले में और ज़्यादा दम लगाना सीखिए।
सच्चाई से ही काटिए झूठ की तलवार को,
मक्खन चापलूसी का कम लगाना सीखिए।
दुनिया में सारा जीवन खुशनुमा हो जाएगा,
अंधियारे में रौशनी का बम लगाना सीखिए।
ज़फ़र’ थाम के रखिए उम्मीद के शरारे तुम,
दिल की हसरतों से ना ग़म लगाना सीखिए।

मैने बच्चों को सस्ती घुट्टियां नहीं पिलाईं

मैने बच्चों को सस्ती घुट्टियां नहीं पिलाईं।
ऐसे ही तेरे ज़ुल्म की दीवारें नहीं हिलाईं।
मुसीबतों से लड़ने का सबक़ सिखाया है,
मां-बाप ने खेलने को गुड़ियें नहीं दिलाईं।
ऐसे पेड़ काटे हैं सियासत की आरियों ने,
आंधियों ने जिनकी टहनियां नहीं हिलाईं।
ऐ सर्दियों ना टहलो बिल्कुल भी शहर में,
गरीबों ने अभी तक बन्डियां नहीं सिलाईं।
वो मुज़रिम नहीं है अगर तो बात क्या है,
मेरे पास से गुज़रा तो आंखें नहीं मिलाईं।
ज़फ़र याद कर मेरे बचपन की अमीरियां, 
मां ने कभी रोटियां गिनकर नहीं खिलाईं।
– ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413,कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-110032 ,zzafar08@gmail.com 

You May Also Like