गाँव की शाम

गाँव की शाम

दूर कहीं झुरमुटों के पीछे डूबता सूरज
खेतों से लौटता किसान
चर कर लौटती गायें

गाँव की शाम
गाँव की शाम

और उनके इन्तजार मे रभातें बछड़े
तुलसी के चौरे पर दिया जलाती माँ

चूल्हे मे उपले भरती बहन
लौट आयी बूढ़े बरगद की जवानी
नीचे बच्चे और ऊपर पंक्षी
कलरव कर के उसका आनन्द मना रहे हैं

दूर कही सुनाई दे रही है
वही परिचित आटा चक्की की आवाज
आज घर की छत पर बैठा
मै देख रहा हूँ दृश्य तमाम
काश लौटकर फिर से आ जाये
वही सुकून भरी गाँव की शाम
                                       


 – राम सेवक

                                                                                                                                    ग्रा. सतवरी,कानपुर

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