गैर क्या जानिये/फिराक गोरखपुरी

फिराक गोरखपुरी
गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं
आप कहते हैं जो ऐसा तो बजा कहते हैं

वाक़ई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं
न वफ़ा कहते हैं जिसको न ज़फ़ा कहते हैं

हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश
हम तो इन्सान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं

तेरी सूरत नजर आई तेरी सूरत से अलग
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्ननुमाँ कहते हैं

शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से
हम खुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं

तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयाँ नामुमकिन
फायदा क्या है मगर यूँ ही जरा कहते हैं

लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकशी को
हम तो इन बातों को अच्छा न बुरा कहते हैं

औरों का तजुरबा जो कुछ हो मगर हम तो ‘फ़िराक’ 
तल्ख़ी-ए-ज़ीस्त को जीने का मज़ा कहते हैं

फिराक गोरखपुरी
( रघुपति सहाय) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है।उन्हें  साहित्य
अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से
सम्मानित किया गया।  १९७० में इन्हें साहित्य अकादमी का सदस्य भी मनोनीत
कर लिया गया था। फिराक गोरखपुरी की शायरी में गुल-ए-नगमा, मश्अल,
रूहे-कायनात, नग्म-ए-साज, गजालिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती
की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागां, शोअला व साज, हजार दास्तान,
बज्मे जिन्दगी रंगे शायरी के साथ हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात,
परछाइयाँ और तरान-ए-इश्क जैसी खूबसूरत नज्में और सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
जैसी रुबाइयों की रचना फिराक साहब ने की है। उन्होंने एक उपन्यास साधु
और कुटिया और कई कहानियाँ भी लिखी हैं। उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा
में दस गद्य कृतियां भी प्रकाशित हुई हैं।


You May Also Like