जामवंत हैं अन्ना/रणजीत कुमार की कविता

रणजीत कुमार

कोई आए आके  मेरा अब तो नब्ज़ देखले 
जो ह्रदय के घाव है मन का कब्ज देखले
आँखें तो चाहती हैं रोना आज निरंतर
नेताओं  के बेशर्मी बाग सब्ज देख  लें 
सरकार हो तुम हम भी तो हैं आम आदमी
किस मिट्टी के बने हो हैं न आँखों  में नमी 
इतना न  झुकाओ की टूट जाए ये कमर
फूलों का गला घोटता नहीं कहीं भ्रमर 
एक अन्ना  ने जो किया स्मरण वो रहे 
हमारे भी धमनियों में वही रक्त बह रहे 
सोंचो अगर  आ जाएँ हजारों में हजारे 
लंगोटी  सम्हाल कैसे भाग पाओगे  प्यारे
घमंड तो रावण का भी चूर हुआ था
हनुमान  अकेले से मजबूर हुआ था
भूलना नहीं हमार जामवंत हैं अन्ना 
आये है हम बदलने  इतिहास का पन्ना ...............


यह
रचना रणजीत कुमार मिश्र द्वारा लिखी गयी है। आप एक शोध छात्र है। इनका
कार्य, विज्ञान के क्षेत्र में है . साहित्य के क्षेत्र में इनकी अभिरुचि
बचनपन से ही रही है . आपका उद्देश्य हिंदी व अंग्रेजी लेखनी के माध्यम से
अपने भाव और अनुभवों को सामाजिक हित के लिए कलमबद्ध करना है।

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