दीवारों में कैद दर्द
यही मेरा टूटा-फूटा मकान है
मेरा नाम प्रेमपाल है
मेरे बच्चे परेशान है
यह मेरे चार छोटे-छोटे बच्चे है
जो भूख से निढाल है।
बीमारियों से ज्यादा हमें
भूख मार देती है साहब!
कयामत से ज्यादा
मेरे बच्चों की नम आंखें
मार देती है साहब!
मैं रहने वाला हूं भारत का
मैं एक ही पीड़ा नही
कई दर्द हूं प्रेमपालो का।
शासन क्या है मुझे नहीं पता
हुकूमत क्या है मुझे नहीं पता
न खाने को अन्न है
न पेट के लिए रोजगार
भूख की पीड़ा क्या होती है
मुझे तो सिर्फ यही पता।
नही चाहिए हमें सियासत शोहरत
हमें उम्मींद बस दो रोटी का
कल की हालत बची हुई है
आज जरूरत है बस खाने का।
न पास मेरे पैसा है
यह कुदरत का खेल कैसा है
बस उम्मींद हमें तड़पाता है
बच्चों की भूखी सूरत हमें सताता है।
निकल जाता हूं कड़ी धूप में
खाली पेट जिंदगी की कीमत लेने
अफसरानों की बेमुरव्वत
और भी भारी हो जाते साहब!
खाली पेट, पीठ पर लाठी के निशान
क्या करूं साहब!
मैं हूं बहुत परेशान
बच्चें भूखें है, छटपटा जाता है प्राण।
भूख से मर जाए साहब!
या भूख को मारने के लिए मर जाए
अपनी विवशता देख-देखकर
हम कितने बार डर जाए।
आंसु छलक पड़ते है
जब बच्चे रो पड़ते है साहब!
अब तो जीवन के विरुद्ध
कुछ करना होगा
बदनाम न हो मेरा समाज
चुपचाप मौत की नींद सोना होगा।