नज़्म रोती है

नज़्म रोती है.…
(स्व.डॉ. राहत इंदौरी को एक श्रद्धांजलि )

अशआर हैं बेनूर, क्या अल्फ़ाज़ का ग़म भी  देखा है ?
मतला हुआ बेचैन  ,क्या क़ाफ़िए को  फफकते देखा है?
मक़ता तड़प रहा है, क्या रदीफ़ को भी चुप देखा है?

डॉ.राबिया परवीन
डॉ.राबिया परवीन

जज़्बात हैं ग़मगीन, क्या मोहब्बत को तन्हा देखा है ?
नज़्म रोती है  ज़ार ज़ार  ,
क्या शायरी को बदहवास देखा है ?
महफ़िल हुई वीरान ,
क्या मातम अदब का देखा है ?
एहतेजाज है ख़ामोश,क्या हौसलों को पस्त देखा है?
वोह आख़री सफ़ वाला ,जिसकी ज़ुबां बने तुम ।
राहत, क्या तुमने उसके अश्कों का दरिया देखा है ?
इस दौर ए ज़ुल्मत में वोह  मिस्बाह ए सदाक़त ,
राहत जो बुझ गया तो,उर्दू पे सितम  देखा है ?
हां हमने सितम देखा है ।
इक़बाल ,फ़ैज़ ,बिस्मिल कहते हैं आफ़रीन आज ,
सुनते है के फ़िरदौस ने  वोह बज़्म ए सुख़न देखा है ।






– डॉ.राबिया परवीन
एसोसिएट प्रोफेसर , पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर

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