जल गए अरमान सारे

जल गए अरमान सारे

जल गए अरमान सारे
हुए ख्वाब पत्थर के सारे
कशमकश मे तुमने घायल किया मुझे
ख़ामोश हो गए मेरे इन्तजाम सारे
तन्हा दिल लड़ता रहा तन्हाइयों से
वो महफ़िल की मंजर चुरा गया सारे

रिंकी मिश्रा
रिंकी मिश्रा

पहली ही नज़र थी मुहब्बत की अभी
एक मुलाकात मे वो वादे कर गया सारे
उसकी सूरत और बेवफ़ाई में फर्क बहुत था
पार कर गया वही बेवफ़ाई के हद सारे
कोई तो होगा भीड़ भरी शहर में ईमान वाला
या इश्क़ करने वाले बेईमान हो गए सारे।।
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2.गज़ल
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छुड़ा कर हाथ वो भी ग़मज़दा हुआ
जाना उसका मेरे लिए जफ़ा हुआ

रोया वो भी होके जार-जार
मगरूर बेपरवाह भी ग़मज़दा हुआ

शाम ढ़ले चला आता है मेरे चिलमन मे
वो जो जाने पर आमादा  हुआ

तमाशा तो उसने खूब किया जज्बातों के साथ
सोये दर्द को हवा देना अंदाज़-ए-अदा हुआ

सुना है लोगों से कहते हुए उसको आजकल
दिल तोड़ा तेरा दिल में तेरा हीं कदा हुआ।
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3.गज़ल
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बारिश के मौसम भी अब्र-ओ-घटा नहीं रखता।
सावन में अब ख़ास क्यों अदा नही दिखता।
मोहब्बत गम की बारिश है ख़ूब सुना है ये हमने।
डरते है भीगने से मगर बिन भीगे मज़ा भी नही आता।
अजल है ये आँसू आंखो को अब है अज़ीज मगर अफ़सुर्दा।
उसके अन्जुमन पर अब्तर हुए बिन कोई और इत्तिका भी नही मिलता।
इत्तिहाम क्या दूँ मैं उसको इन्तिख़ाब तो मैंने किया।
काइल काईदा का वो ख़जालत अदा ख़्याल
“रिंकी” पत्थरों से दिल लगा के वफ़ा नही मिलता।
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4.गज़ल
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वो गली वो चौराहा कब अज़नबी हो गया
बदले रवैये इंसानी मिज़ाज के
किराये का जैसे शहर हो गया
उठता था शोर मोहहले के पार्क से
पुख़्ता-पुख़्ता ये मौन हो गया
सहमें  गली बाज़ार है
जिंदगी दहशत से तंग हो गया
बेदम हुई इश्क की दीवारें
मलबा कोई पत्थर में दब गया
कोई बढ़ाये हाथ लेकर हाथ में ईमान
देखिए शहर फिर से रौशन हो गया।

यह रचना रिंकी मिश्रा जी द्वारा लिखी गयी है . आप एक गृहणी हैं और स्वतंत्र रूप से साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन में रत हैं . 

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