जेल में जीव जंतु जवाहरलाल नेहरु
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जेल में जीव जंतु पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या संस्मरण जेल में जीव-जंतु , लेखक जवाहरलाल नेहरु जी के द्वारा लिखित है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेज़ी हुकूमत ने पंडित जवाहरलाल नेहरु (भारत के प्रथम प्रधानमंत्री) को कई बार जेल में बंद किया, जहाँ उनके संगी-साथी जीव-जंतु ही हुआ करते थे। इस पाठ के माध्यम से पशु-पक्षियों के प्रति लेखक की भावनाएं प्रस्फुटित हुई हैं। लेखक कहते हैं कि लगभग साढ़े चौदह महीने तक मैं देहरादून जेल की अपनी छोटी-सी कोठरी में रहा और मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं उसी का एक हिस्सा हूँ। धीरे-धीरे उसके प्रत्येक अंश से मैं परिचित हो गया। हालाँकि दूसरी जेलों में मुझे इससे अच्छी कोठरियां मिली थीं, मगर देहरादून में मुझे एक विशेष लाभ मिला था, जो मेरे लिए बहुत मूल्यवान था। असली जेल एक बहुत छोटी जगह थी और हम जेल की दीवारों के बहार एक पुरानी हवालात में रखे गए थे। लेकिन थी यह अहाते में ही। यह इतनी छोटी थी कि इसमें आसपास घूमने की कोई जगह न थी। हमको सुबह-शाम फाटक के सामने कोई सौ गज़ तक घुमने की छूट थी। जो-जो जीवधारी या कीड़े-मकोड़े हमारे सामने आते, उनको हम ध्यान से देखते थे। अधिक ध्यान दिए जाने पर मैंने देखा कि मेरी कोठरी में और बहार के छोटे-से आँगन में हर तरह के जीव-जंतु रहते हैं। ये हर किस्म के रेंगनेवाले, सरकनेवाले और उड़नेवाले जीवधारी मेरे काम में ज़रा भी दखल दिए बिना अपना जीवन बिताते थे, तो मुझे क्या पड़ी थी कि मैं उनके जीवन में बाधा पहुँचाता ? लेकिन खटमलों, मच्छरों और कुछ-कुछ मक्खियों से मेरी लड़ाई रहती थी। ततैयों और बर्रों को तो मैं सह लेता था।
मैं चीटियों, दीमकों, छिपकलियों और दूसरे कीड़ों को घंटों देखता रहता था। वे शाम को अपना शिकार चुपके से पकड़ लेतीं और अपनी दुम में एक-दूसरे को इतने अजीब ढंग से लपेटकर हिलातीं कि देखते ही हँसी आने को होती। लखनऊ जेल में मैं बहुत देर तक एक ही आसन में बैठे-बैठे पढ़ा करता था। कभी-कभी कोई गिलहरी मेरे पैर पर चढ़कर मेरे घुटनों पर बैठ जाती और चारों तरफ़ देखती। फिर वह मेरी आँखों की ओर देखती, तब उसकी समझ में आता था कि मैं पेड़ या जो कुछ उसने समझा हो, वह नहीं हूँ। एक क्षण के लिए तो वह सहम जाती, फिर दुबककर भाग जाती।
अल्मोड़ा की पहाड़ी जेल को छोड़कर जिस जेल में भी मुझे क़ैदी के रूप में रखा गया, वहाँ कबूतर ख़ूब मिले। हजारों की तादाद में वे शाम को उड़कर आकाश में छा जाते थे। वहाँ मैनाएँ भी थीं, वे तो सभी जगह मिलती हैं। देहरादून में तरह-तरह के पंछी थे और उनके कलरव और ज़ोर-ज़ोर से चिंचिंयाने, चहचहाने और टें-टें करने से एक अजीब समां बंध जाता था। कोयल की दर्दभरी कूक का तो पूछना ही क्या ! बारिश में और उसके ठीक पहले पपीहा आता। ‘पीहु-पीहु’ की उसकी रटंत लगातार सुनकर दंग रह जाना पड़ता था। चाहे दिन हो या रात, धूप हो या मेह, उसकी टेर नहीं टूटती थी। बरेली जेल में बंदरों की खासी आबादी थी। उनकी कूद-फांद, मुँह बनाना आदि हरकतें देखने लायक होती थीं…। ।
जेल में जीव जंतु पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1- नेहरु जी को बार-बार जेल में क्यों रहना पड़ता था ?
उत्तर- अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण नेहरु जी को बार-बार जेल में जाना पड़ता था।
प्रश्न-2- नेहरु जी जेल की कौन-कौन सी चीज़ों से परिचित हो गए थे ?
उत्तर- नेहरु जी जेल की सफ़ेद दीवारों और खुरदुरे फ़र्श के हरेक निशान और गड्ढे और उसकी शहतीरों पर लगे घुन के छेदों से परिचित हो गए थे।
प्रश्न-3- देहरादून की जेल में पक्षी अजीब-सा समां कैसे बाँध देते थे ?
उत्तर- देहरादून की जेल में तरह-तरह के पंछी थे और उनके कलरव और ज़ोर-ज़ोर से चिंचिंयाने, चहचहाने और टें-टें करने से एक अजीब समां बंध जाता था।
प्रश्न-4- देहरादून में मिली कोठरी दूसरी जेलों से अच्छी क्यों थी ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, देहरादून में मिली कोठरी दूसरी जेलों से अच्छी इसलिए थी, क्योंकि असली जेल छोटी थी और नेहरु जी को जेल की दीवारों के बाहर एक पुराने हवालात के अहाते में रखा गया था। जगह छोटी होने के कारण बाहर तो घूम-फिर नहीं सकते थे, परन्तु सुबह-शाम फाटक के सामने सौ गज़ तक घुमने की छुट मिली थी।
प्रश्न-5- गिलहरियों के साथ नेहरु जी के कैसे संबंध थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, गिलहरियों के साथ नेहरु जी के बेहद स्नेहपूर्ण संबंध थे। वे बहुत निडर और बेझिझक होकर उनके पास आ जाती थीं। कभी-कभार तो वे उनके पैरों से चढ़कर उनके घुटनों पर बैठ जातीं और चारों ओर देखतीं। फिर उनसे नज़र मिलने पर सहमकर भाग जातीं।
प्रश्न-6- इस पाठ से नेहरु जी की किन चरित्रगत विशेषताओं का पता चलता है ?
उत्तर- नेहरु जी एक सच्चे देशभक्त होने के साथ-साथ प्रकृति-प्रेमी भी थे। उनके हृदय में सभी जीव-जंतुओं के प्रति करुणा तथा सहानुभूति थी। उनका मानना था कि मानव की तरह अन्य जीव-जंतु भी ईश्वर की अनुपम रचना हैं।
प्रश्न-7- ‘आखिर मैंने इरादा छोड़ दिया और तय किया कि यदि वे मुझे न छेड़ें तो मैं भी उन्हें आराम से रहने दूँगा’ — यह क्यों कहा ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, एक बार ततैये के काट खाने पर नेहरु जी ने उन्हें निकालना चाहा किन्तु अपने चंदरोज़ा घर तथा अंडे बचाने के लिए उन्होंने एकजुट होकर उनका मुक़ाबला किया। तब नेहरु जी ने उन्हें भगाने का इरादा छोड़ दिया तथा यह निश्चय किया कि यदि वे उन्हें न छेड़े तो नेहरु जी भी उन्हें आराम से रहने देंगे।
व्याकरण बोध
प्रश्न-8- इस पाठ में अनेक पशु-पक्षियों, कीड़ों आदि का उल्लेख हुआ है। नीचे बॉक्स में कुछ ध्वनियाँ दी गई हैं। इनका मिलान पशुओं-पक्षियों से करके उनके सामने लिखिए।
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –
चिड़िया – चहचहाना
मेंढक – टर्र-टर्र
बंदर – किलकिलाना
मक्खी – भिनभिनाना
घोड़ा – हिनहिनाना
कुत्ता – भौं-भौं
पपीहा – पीहु-पीहु
भँवरा – गुंजार करना
कबूतर – गुटरगूं
गधा – रेंकना
कौआ – काँव-काँव
साँप – फुफकारना
जेल में जीव जंतु पाठ से संबंधित शब्दार्थ
शहतीर – बड़े और लंबे लट्ठे
घुन – एक कीड़ा जो खा-खाकर चीज़ों को खोखला कर देता है
हवालात – जेल
बर्र – भिड़ , ततैया
रोज़मर्रा – प्रतिदिन , नित्य
चंदरोज़ा – कुछ दिनों का
निहायत – बहुत ज्यादा , बिलकुल
निःशंक – बिना किसी शंका के
मसला – मामला
कलरव – पक्षियों की मधुर ध्वनि।