सूरज की हो गई रे चोरी
आसमान तो बहुत दूर है,
चंदा भी है छिपा हुआ
हवा करे मेघों से छिछोरी
सूरज की हो गई रे चोरी ll
इगलू जैसा मेरा घर
कंबल में सब दुबके बैठे
आग से कोई बात न कर ll
सुरभि ,घिरी रहे घर
बाहर कोरोना का डर
चार दिनों से एसी ठंड
सूरज किसके घर बंद
गली, खेलने तब जाएंगे
एक नया, सूरज लाएंगे ll
जब भी प्रेम किसी से
टीस जब बढ जाये, तो
हाल यही होता है
चोट कहीं लगती है
और दर्द कहीं होता है ll
मन के समझाने को यूं तो,
हजार बातें हैंl
दिल जब फटता है तो,
बहुत बहुत रोता है ll
होता जब भी प्रेम किसी से ,
अनायास होता हैl
सायाशी में सही मानिये,
प्रेम नहीं होता है ll
प्रीति, खरी मणिमाला सदृश
टूटे, मत कर रोष l
हृदय- कंठ में बांधिये
यही , प्यार-परितोष ll
– क्षेत्रपाल शर्मा
19/17, शान्तिपुरम, सासनी गेट, आगरा रोड, अलीगढ़ 202001