बिन चिड़िया का जंगल पाठ का सारांश प्रश्न उत्तर

बिन चिड़िया का जंगल – विश्वनाथ सचदेव

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बिन चिड़िया का जंगल पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ या निबंध बिन चिड़िया का जंगल, लेखक विश्वनाथ सचदेव जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने यह चिंता व्यक्त किया है कि छोटे जीवों अर्थात् चिड़ियों, तितलियों आदि के प्रति हमारी संवेदना कम क्यों होती जा रही है। वाकई, प्रगति की अंधाधुंध रेस ने प्रकृति के इन सुन्दर उपहारों को हमसे छीन-सा लिया है। लेखक कहते हैं कि कुछ दिन पहले शहर के एक बड़े अखबार में छपे ख़बर के मुताबिक पक्षीविदों की यह चिंता उजागर हुई थी कि शहर में गौरैयों की संख्या लगातार घट रही है और कौओं की संख्या बढ़ती जा रही है। ख़बर को पढ़कर मुझे एक पुरानी घटना याद आई। एक दिन अचानक ही शहर के एक व्यस्त इलाके में पौधों के एक झुरमुट में एक तितली को देखकर अचानक मुझे अहसास हुआ था कि मुझे याद नहीं कि मैं कितने दिनों बाद तितली को देख रहा हूँ। 

हमारी शहरी सभ्यता ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करती जा रही है, जिसमें घर में चार गमले रखकर जंगल का सुख भोगने का भ्रम हमें पालना पड़ता है और घर में दो बाई दो फुट का समंदर बनाकर हम सातों समन्दरों की रंग-बिरंगी मछलियों को निहारने का सुख पा लेते हैं। कहीं न कहीं महानगरों और फ्लैट संस्कृति ने हमसे वह आँगन भी छीन लिया है, जहाँ सवेरे-सवेरे सूर्य की किरणें और पक्षियों की चहचहाहट एक साथ उतरा करती थी। अब तो फ्लैट के अंदर धूप और चिड़िया दोनों का आना मुश्किलों से भरा है। इस तरह के घरों में निवास करना भी संकुचित मन का पर्याय है या फिर कह लें कि पत्थर होने का एक एहसास।

बिन चिड़िया का जंगल पाठ का सारांश प्रश्न उत्तर

मुझे एक बार जापान जाने का मौका मिला था। उस वक़्त मैं हिरोशिमा भी गया था। दूसरे विश्वयुद्ध में परमाणु बम की विभीषिका झेलेनेवाले इस शहर को जापानियों ने बहुत ही सुंदर रूप दिया था। बहुत सारे बगीचे हैं वहाँ तथा पेड़ की गिनते तो पूछिए मत। वहाँ पर कौए ही कौए दिखाई दे रहे थे, जिस दृश्य को देखकर मुझे कुछ अजीब लगा। ये सच है कि दूसरे विश्वयुद्ध में परमाणु बम की विभीषिका सिर्फ जापानी जनता ने ही नहीं झेली थी। जापान के पेड़-पौधे भी झुलसे थे उस आग में और वहाँ के पशु-पक्षियों ने भी भोगा था उस ज़हर का परिणाम। हो सकता है कि नन्हीं गौरैया भी उसी का शिकार हो गई हो, इसलिए कहीं पर दिखाई नहीं दे रही है। 

वह नन्हीं-सी चिड़िया जो कभी चीं-चीं करती हमारे आँगन को भरा-भरा बना जाती थी, अब कम दिखने लगी है। पक्षीविद कहते हैं, हम उन परिस्थितियों को समाप्त करते जा रहे हैं, जिनमें ऐसे नन्हें जीव पल सकें। लेकिन सवाल सिर्फ उन परिस्थितियों के समाप्त होते जाने का नहीं है। सवाल उस मानवीय एहसास को लगातार खोते जाने का भी है, जो किसी नन्हीं-सी जान के होने को महत्वपूर्ण बनाता है, अर्थवान बनाता है। सवाल उन संवेदनाओं के भोथरी होते जाने का भी है जो प्रकृति के साथ मनुष्य के रिश्तों को आकार देती हैं। किसी महानगर में चिड़ियों के कम होने की ख़बर महज एक छोटी-सी जानकारी नहीं है। उस ख़बर का अर्थ यह भी है कि हम कुछ गवाँ रहे हैं। पिछली सदी के एक बड़े चिंतक शूमाकर ने कहा था – स्माल इज़ ब्यूटीफुल यानी जो छोटा है, वही सुंदर है। 

अब तो कोयल की कूक भी हमें अच्छी नहीं लगती। एक घटना अब भी मुझे याद है कि शहर की एक ऊँची इमारतोंवाली कॉलोनी के ऊँचे लोगों ने एक कोयल पर पानी डाल-डालकर उसे अपने यहाँ से भगा दिया था। उसकी गलती यह थी कि वह पौ फटने से पहले ही गाना शुरू कर देती थी। उसकी कुहू-कुहू से कॉलोनी के बड़े लोगों की नींद खराब हो जाती थी। अब ऐसी हालत में कोई पक्षी हमारे आँगन में क्यों चहके ? क्यों कोई तितली हमारे जीवन में रंग भरे ? यह आवाज़, यह सौन्दर्य फूल के खिलने जैसे रहस्यों जैसा है। हम शायद भूल गए हैं कि रहस्य को समझने की इसी प्रक्रिया ने हमें पशु से मनुष्य तक पहुँचाया है। फिर हम पीछे क्यों लौटना चाहते हैं……?                            

बिन चिड़िया का जंगल पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1- अखबार में छपी ख़बर किस बारे में थी ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, अख़बार में छपी ख़बर एक छोटी सी चिड़िया के बारे में थी।   

प्रश्न-2- हमारी शहरी सभ्यता ने किन परिस्थितियों का निर्माण कर दिया ? 

उत्तर- हमारी शहरी सभ्यता ने ऐसी परिस्थितियों का निर्माण कर दिया है कि हम घर में चार गमले रखकर जंगल का सुख भोगने का भ्रम पालते हैं और दो बाई दो फुट का समुन्दर (एक्वेरियम) बनाकर सातों समुन्दरों की रंग-बिरंगी मछलियों को निहारने का सुख पा लेते हैं।   

प्रश्न-3- लेखक ने त्रासदी किसे कहा है ? 

उत्तर- त्रासदी से आशय दुःख से है अर्थात् लेखक के अनुसार दुःख की बात यह है कि अब हमें कोयल की कूक भी अच्छी नहीं लगती।   

प्रश्न-4- मनुष्य के पत्थर होते जाने का क्या अर्थ है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, मनुष्य के पत्थर होते जाने का यह अर्थ है कि मनुष्य के अंदर से मनुष्यता की भावना धीरे-धीरे ख़त्म होते जा रही है। वह अपनी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इतना व्यस्त है कि रिश्ते निभाने का उसको फुर्सत ही नहीं और न ही किसी तितली या किसी नन्हीं चिड़िया की ज़िंदगी से जुड़ने का एहसास शेष है।   

प्रश्न-5- युद्ध के क्या दुष्प्रभाव होते हैं ? 

उत्तर- युद्ध एक भयावाह स्थिति को जन्म देता है। युद्ध में दोनों पक्षों के लोग मारे जाते हैं तथा संपत्ति की भी हानि होती है। युद्ध में एक-दूसरे से जोड़ने वाली संवेदना और मनुष्यता समाप्त हो जाती है। लोगों के घर उजड़ जाते हैं और बच्चे अनाथ हो जाते हैं। ऐसे और भी कई दुष्प्रभाव युद्ध के होते हैं।        

    

प्रश्न-6- नन्हीं चिड़िया और तितलियाँ कम क्यों हो रही हैं ? 

उत्तर- वास्तव में नन्हीं चिड़िया और तितलियाँ इसलिए कम होते जा रही हैं, क्योंकि हम उन परिस्थितियों को ही ख़त्म करते जा रहे हैं, जिन परिस्थितियों में ऐसे जीव ज़िंदगी पा सके।    

प्रश्न-7- कोयल पर पानी डाल-डालकर उसे क्यों भगा दिया गया ? 

उत्तर- कोयल पर पानी डाल-डालकर उसे इसलिए भगा दिया गया क्योंकि उसकी मीठी तान सुबह-सुबह ही लोगों के कानों में गूँजने लगती थी। जिसकी वजह से कॉलोनी के ऊँची इमारतों में रहने वाले बड़े लोगों की नींद खराब हो जाती थी।    

प्रश्न-8- सही वाक्यांश चुनकर वाक्य पुरे कीजिए – 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –

  • ‘दो बाई दो फुट के समुन्दर’ का अभिप्राय है …एक्वेरियम… । 

  • जापान आज …परमाणु बमजनित रेडियोधर्मिता… का दुष्परिणाम भुगत रहा है। 

  • शूमाकर ने कहा था …स्माल इज़ ब्यूटीफुल… । 

भाषा से… 

प्रश्न-9- मूलशब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए – 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –

  • सांस्कृतिक – संस्कृति + इक 

  • संकुचित – संकोच + इत 

  • मानवीय – मानव + ईय 

  • चिंतक – चिंता + अक 

  • बुढ़ापा – बूढ़ा + आपा 

  • कथित – कथ + इत  

प्रश्न-10- उपसर्ग और मूलशब्द अलग करके लिखिए – 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –

  • परिस्थिति – परि + स्थिति 

  • निवास – नि + वास 

  • संवेदना – सम् + वेदना 

  • निष्प्राण – नि: + प्राण  

प्रश्न-11- निम्नलिखित वाक्यों में संबंधबोधक शब्दों को रेखांकित कीजिए – 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –

  • हम बेजान इमारतों की तरह संगदिल होते जा रहे हैं। 

  • बच्चों का तितली के पीछे दौड़ना हमी खेल लगता है। 

  • धूप फ्लैट की खिड़की से अंदर आती है। 

  • घर से बाहर निकलने के लिए उसे दीवारों से टक्कर मारनी पड़ती है। 

  • युद्ध में मनुष्य के भीतर की करुणा मर जाती है।       

प्रश्न-12- दिए गए वाक्यों की क्रियाएँ सकर्मक हैं या अकर्मक

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –

  • शहर में गौरैया की संख्या घाट रही है। (सकर्मक)

  • मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई। (सकर्मक)

  • उसी ज़हर ने नन्हीं गौरैया को मार दिया। (अकर्मक)

  • मैं हिरोशिमा भी गया था। (अकर्मक)    

 

बिन चिड़िया का जंगल पाठ से संबंधित शब्दार्थ   

  • पक्षीविदों – पक्षियों की जानकारी रखनेवाले 

  • उजागर – प्रकट 

  • झुरमुट – समूह 

  • सौगातों – उपहारों 

  • सहमी-सहमी – डरी-डरी 

  • विभीषिका – आतंक या भयानक परिणाम 

  • रेडियोधर्मिता – परमाणुओं या विद्युत् चुंबकीय किरणों का उत्सर्जन 

  • सिरजे – पैदा किए 

  • भोथरी – खोखली 

  • निष्प्राण – जिसमें जीवन न हो 

  • त्रासदी – दुःख की बात 

  • अरसा – लंबा समय 

  • पौ फटने – सुबह। 

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