मुरारी बापू और बाबा रामदेव में अंतर

मुझे मुरारी बापू पसंद हैं !

मुरारीबापू और बाबा रामदेव में बुनियादी अंतर है। मुरारीबापू कथा कहते हैं।कथा के बहाने व्यापार नहीं करते। वे जो कथा कहते हैं उसका पारिश्रमिक लेते हैं।अपनी रचनाओं को बेचते हैं,यह उनका एक  परंपरागत बुद्धिजीवी के नाते सही काम है। लेकिन बाबा रामदेव तो योग के बहाने औषधी उद्योग चला रहे हैं.योग को राजनीतिक प्रचार का मंच और माध्यम के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। संतई में राजनीतिक घालमेल यानी साम्प्रदायिक विचारधारा का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं।जबकि मुरारी बापू सीधे परंपरागत पाठ और सम-सामयिक उदात्त जीवनमूल्यों की बातें कहते हैं।
मुरारी बापू और बाबा रामदेव में अंतर

सामान्यतौर पर हमारे बौद्धिक जगत का भारतीय ज्ञान और आख्यान परंपरा से कम संबंध है और उनको वह कम जानता है। मुरारीबापू जैसे संतों का महत्व यह नहीं है कि उनके पास कितना बड़ा एम्पायर है,कितनी दौलत है,कितने राजनेता उनकी चरणवंदना करते हैं। ये चीजें गौण महत्व की हैं। काम की बात है आज के आम आदमी के लिए सटीक संदेश।मुरारीबापू ने एक कथा में  महात्मा बुद्ध के हवाले से कहा – “कभी किसी के प्रभाव में नहीं जीना, अपने प्रभाव में जीना.सत्य जहाँ से मिले ले लो, पर किसी से प्रभावित नहीं होना.”

मुरारीबापू की कथा में अनेक ऐसी बातें आती हैं जो समानतावादी और विवेकपूर्ण विमर्श को बढ़ावा देती हैं।  कायदे से मुरारीबापू को मासकल्चर के अंग के रूप में पढ़ें,वे मासकल्चर के अंग के रूप में भारतीय पाठ बना रहे हैं। मुरारीबापू का मानना है विवेक चार प्रकार से मिलता है: – 
१) एक मांगने से मिलता है. फ़िर वो कृपा करे तो.
२) मंथन से मिलता है. खुद के चिंतन से.
३) सत्संग करने से.
४) हमारा गुरु बिन बोले हमें विवेक प्रदान करता है.
मुरारी बापू ने बाबा कयामुद्दीन द्वारा 325 वर्ष पूर्व भारतीय वेदांत और कुरान का समन्वय करते हुए लिखी गई पुस्तक ‘नूर-ए-रोशन’ का लोकार्पण करते हुए कहा कि देश में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा की तर्ज पर एक ‘सद्भावाना सभा’ भी होना चाहिए। जहाँ देश के बुध्दिजीवी, संत और विद्वान बैठकर देश की समस्याओं पर चिंतन कर सके।  
मुरारी बापू ने खुँमार बाराबंकवी के शेर में अपनी बात यों कही-
न हारा है इश्क़ न दुनिया थकी है,
दिया जल रहा है और हवा चल रही है।
वो जहाँ भी रहेगा रोशनी फैलाएगा, 
चिरागों का कोई मकाँ नहीं होता। 
तसबी छोड़दी मैने इस खयाल से, 
गिनकर नाम क्या लेना, वो तो बेहिसाब देता है।
मुरारी बापू ने भी अपने उद्बोधन में एक घटना सुनाते हुए कहा कि बरसों पहले जब मैं ऋषिकेश में अकेला रहता था और प्रतिदिन यज्ञ करता था तो यज्ञ समाप्त होने के बाद देर रात एक बजे गंगा नदी पार कर एक सूफी फकीर बाद यज्ञ की वेदी पर आता था। ये सिलसिला सात दिन तक चलता रहा। एक दिन मैने उससे पूछा कि तुम इतनी रात को यज्ञ की वेदी के पास आकर क्यों बैठते हो, तो उसने कहा, मैं एक मुसलमान फकीर हूँ और कहीं मेरी वजह से हिन्दू लोग नाराज नहीं हो जाए इसलिए रात के अंधेरे में आकर इस पवित्र अग्नि के पास आकर बैठता हूँ। मुरारी बापू ने कहा कि इसके बाद हम दोनों देर रात को अकेले ही चुपचाप यज्ञ की वेदी पर बैठे रहते थे, कभी हमने कोई बात नहीं की, मगर ऐसा लगता है कि उस सूफी फकीर ने मुझ पर अपनी सारी करुणा बरसा दी और मैं आज तक उसमें भिगा हुआ हूँ।
मुझे मुरारीबापू की निम्नलिखित तीन बातें पसंद हैं- वे कहते हैं-
हमारे देश में तीन वस्तु आदमी को आदर के साथ मिलनी चाहिये :
– आगम/ शिक्षण: सबको शिक्षा मिलनी चाहिये.
– उसको अन्न मिलना चाहिये; कोई आदमी भूखा नहीं रहना चाहिये, बच्चे तो खासतौर पर.
– आदमी को आदर के साथ आरोग्य प्राप्त होना चाहिये.
यह लेख जगदीश्वर चतुर्वेदी जी द्वारा लिखा गया है .प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग,कलकत्ता विश्वविद्यालय,कोलकाता, स्वतंत्र लेखन और स्वाध्याय .संपर्क ईमेल – jcramram@gmail.com

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