वीर की मौन साधना

वीर की मौन साधना

मौन की साधना हैं क्या ?
इसने हैं कुछ सम्भाला, कुछ हैं बिखेर दिया
फिर भी ऋषियों का तप रहा
मौन रहा देश जान इसे अपनी महानता
शत्रु ने समझीं इसे कायरता
लुटते रहे मेरे स्वर्ग की अस्मिता

वीर की मौन साधना

कुछ जागे कुछ सोये रहे
बाकी सब कागज पर बिक गये
दल के दल एक हो गये
अखबारों के पन्ने वीरता से भर गये
लगा अब कुछ होगा अब कुछ होगा
सोये मुर्दे जाग गये
ये मुर्दे भयानक रूप लिये आयें,चलते जा रहे हैं
आगे अन्धेरे में चौराहे पर खड़े हुये
देशभक्ति के नारे लगा                                       
भारत माँ के सपूत को श्रध्दांजलि दी                         
फिर क्या ?
लौट पड़े उन्हीं कब्रों में
यह क्या ?
सिर धुना फिर कुछ याद आया
अहा ! मेरे  स्वर्ग रक्षक
यह काफिरों की सभ्यता हैं
लील गई सभ्यता पुरूषत्व राष्ट्रीयता को
रह गया ये कंकाल अब

ओ मेरे स्वर्ग के रक्षक ,माँ भारती के सपूत
तूझे शत-शत प्रणाम
देखा तेरा ताण्डव जब बैरी ने
ध्वस्त हुये उनके इन्द्रासन
टूटा भ्रम तू मौन नहीं
तू ताण्डव  हैं शिव डमरू का
तू जल की ज्वाला हैं
तू रक्षक हैं शम का

देखा मैंने तुझमें राष्ट्र को
देखा प्यारे स्वपन को
देखा उन लाशों को
जिन्दा हैं पर रक्त नहीं
देखा उन हाथों को,जो उठे थे सबके साथ में
पर यह क्या ?
हाथ में चिन्ह लिये  लालसा सत्ता की लिये
आ गये प्यारे मेहमान
मेहमानों ने मिलकर खिचड़ी बनायी
सब दलों ने खुब मिलकर खायी
खायी नहीं खिचड़ी जिसनें, आरोप मढ़े सबने उसपे
झलक पड़े आँसू उसके                                       
याद आयें स्वर्ग रक्षक उसे
ओ ! मेरे सपनों के रक्षक
ओ ! मेरी प्यारी मुस्कान के रक्षक
ओ ! मेरे देश के वीर आत्मा के पूज्य
रहे बल शिव का तेरी भुजाओं में
रहे दृष्टि तेरी चमन उजाले पर
अगड़ाई ले शौर्य विश्व में
मुस्कराये तेरी छाँव में मेरा चमन

तेरी हूँकार मुर्दों में प्राण फूके
तेरा तप गीदड़ों का पर्दा खोलें
तेरे प्राण देश के प्राण बन जायें
तेरा साहस निर्बल का बल बने
तेरी भक्ति हर आत्मा में बस जायें
तब उदय होगा नवराष्ट्र

नव राष्ट्र होगा ऐसा                                             
मौन साधना में ताण्डव होगा जैसा
शम भक्षक का होगा विनाश अब
शम रक्षक का होगा सत्कार अब
देख वायु वेग को अब
गरजना ही नहीं  बरसना भी होगा
मानवता की खातिर उठ खड़ा होना होगा
शम बीज बोयेंगे प्रेम से सीचेंगें
अगर विष घोला किसी ने
उसे ना अब छोडेंगे

नवराष्ट्र होगा अब वीरों का                                 
प्राण बलि होगें शम समता पर
न धर्म जाति होगी, न होगा पराया कोई
न द्वेष होगा, होगा न राजा रंक कोई
होगें सब सन्तति भारत माँ के

प्राण से प्राण मिलेंगे जब
होगा प्रेम का संचार तभी
भुजा से भुजा मिलेगी जब                                 
होगा राष्ट्र सुदृढ तभी
शम, समता ,दया, स्नेह मिलेंगे जब
होगा स्वर्ग का निर्माण तभी
स्वपन से स्वपन मिलेंगे जब                               
आगे बढेगा राष्ट्र तभी
वीर की मौन साधना से बल मिलेगा तभी ।।

                             




-अनिता चौधरी
                                    शाहपुरा(जयपुर) राजस्थान
          

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