कौन बनके आया आईना मेरा
पर्दा ही अपने फ़र्ज़ में क्यूँ नाक़ाम रहा मेरा!
परत दर परत में छुपा रखा था जिसे!
बेपर्दा हुआ जा रहा है मन मेरा!
वो कभी गैर भी है, कभी अपना भी
कभी सच भी है कभी सपना मेरा !
हाय! ये कौन बनके आया आईना मेरा!!
वो मेरी मंज़िल, मेरी राह, हमक़दम भी नहीं मेरा!
मेरी मुहब्बत, मेरा ख़्याल, सनम भी नहीं मेरा!
फिर क्यूँ दिखा मुझे उसमे नक़्श मेरा!
हाय! ये कौन बनके आया आईना मेरा!!
वो कौन सी आहट जो आह भी भरती नहीं!
साफ़ ख़्याल भी नहीं, साफ़ मुकरता भी नहीं!
तपिश-ए-तमन्ना में जलता है ‘अलमास’ दिल मेरा!
हाय! ये कौन बनके आया आईना मेरा!!
शेख अलमास इमरान, मध्य प्रदेश के खरगौन से हैं और वर्तमान में अंग्रेजी साहित्य से स्नातोकोत्तर, अंतिम वर्ष की छात्रा हैं. उर्दू और हिंदी कविता में इनकी विशेष रूचि है.
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