कैसे लिखूँ ?

कैसे लिखूँ ?

आज हुआ यह कैसा विषाद,
 मन और कलम का विरोधाभास ।
 यह नवआगमन ,यह पतझड़ की विदाई ,
 यह नव पल्लव, ये खिलते फूल ,
 यह फागुन की मस्ती ,कुछ भी नहीं भाती ।
  प्रेम और प्रेमियों का मौसम ,
विद्या शर्मा
विद्या शर्मा
  हम कवियों की प्रतीक्षा का फल ,
  पर मैं कैसे लिखूं आज प्रेमगीत,
   कैसे करूं बसंत का गुणगान ,
   कैसे रचूँ किसी रमणी का रूप ,
  और प्रणय के संवाद ।
  मेरी लेखनी उन चीखो  से आतंकित है,
  जो मर कर भी जिंदा है ।
  वह  आत्माएं मुझे पन्नों पर मिलती हैं,
   जो बिलखती, इंसाफ मांगती हैं ।
   मैं कैसे लिख दूं सब ठीक है ,
   वह यंत्रणा, वह पीड़ा आज भी ,
   उसके क्षत-विक्षत शरीर पर अंकित है ।
   अपने घावो को, वो मर कर भी ढोती है बेबस,
   क्योंकि वह दुराचारी स्वतंत्र है ।
   मैं कैसे लिख दूं कि मैं खुश हूं ,
   जबकि वह करुण पुकार,
    मुझे सोने नहीं देती ।
   जब भी कलम उठाती हूँ,
   उसकी फटी आंखें मुझे घूरती हैं ,
   मुझ पर थूकती हैं , मुझे धिक्कारती है ।
    कब मिलेगा इंसाफ, वह मुझसे पूछती है ।
   हर गली ,हर चौराहे पर ऐसी रूह भटकती है ।
  मै कैसे लिख दू ऐ बसंत ! तेरा प्रेम सुरक्षित है ।

– विद्या शर्मा
फरीदाबाद हरियाणा

You May Also Like