स्याही में सुर्खाब के पंख

स्याही में सुर्खाब के पंख


साहित्य जितना स्थानीय होता है उसका प्रभाव दूर तक होता है : डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
नई दिल्ली, 2 नवम्बर 2017: राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक साहित्यक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी साहित्य जगत से जुडी कई नामचीन हस्तिओं ने भाग लियाl यह परिचर्चा अल्पना मिश्र की इस वर्ष आई  किताब ‘स्याही में सुर्खाब के पंख’ पर की गयी .
कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आए प्रसिद्ध साहित्यकारों ने इस पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए जिनमे शामिल थे विश्वनाथ त्रिपाठी, मृदुला गर्ग, प्रेम भरद्वाज, विभास वर्मा और नवीन कुमार नीरजl कार्यक्रम का संचालन महेंद्र प्रजापति ने किया.
वरिष्ठ साहित्य समालोचक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने परिचर्चा में कहा कि “कोई भी साहित्य जितना स्थानीय होता है उसका प्रभाव दूर तक होता है। अल्पना मिश्र के लेखन की यही बड़ी बात है कि वो अपनी ज़मीन को पकड़े हैं.”
इस अवसर पर पत्रकार प्रेम भारद्वाज ने पुस्तक पर बोलते हुए कहा कि  “अल्पना मिश्र  की खासियत है कि वो टुकड़ों में लिखती हैं बिल्कुल पिकासो के चित्र के तरह। वह संकेतों में बात करती हैं। जो कविता की पहचान है वो इनकी कहानियों में है.”
लेखिका अल्पना मिश्र इस अवसर पर अपने भाव रखते हुए कहा कि जब में जीवन को जानने लगी तो अपने निकट सारे चरित्र  दिखने लगे जो अपने परस्थितियों से टकराते हैं और इनहीं जीवन की जटिलताओं को पकड़ने और उनको समेट लेने की कोशिश मैंने अपने लेखनी में की है.
‘स्याही में सुर्खाब के पंख’ अल्पना मिश्र की कहानियों का संग्रह हैl इस संग्रह में शामिल कहानियां हैं- ‘स्याही में सुर्खाब के पंख’, ‘कत्थई नीली धारियों वाली कमीज’, ‘चीन्हा-अनचीन्हा’, ‘सुनयना!  तेरे नैन बड़े बेचैन’, ‘राग-विराग’, ‘इन दिनों’ और ‘नीड़’l अल्पना मिश्र की कथा-क्षमता विवरण-बहुलता में वास्तविकता के और-और करीब जाने की कोशिश में दिखाई देती है, जिसमें वे एक कुशल शिल्पी की तरह सफल होती हैं। उनकी कहानियों में
स्याही में सुर्खाब के पंख
स्याही में सुर्खाब के पंख

कहीं भी शाब्दिक चमत्कार से कथ्य अथवा दृष्टि के अभाव को पूरा करने की न मजबूरी दिखाई देती है, न चालू मुहावरे का कोई ऐसा दबाव कि वे जीवन-स्थितियों के सच से अपनी पकड़ को जरा भी ढीली करें। नब्बे के दशक में सामने आए कथाकारों में उन्होंने अपनी एक विशिष्ट जगह बनाई है और लगातार चर्चा में रही हैं। अपने इर्द-गिर्द के संसार में पूरे भरोसे और स्पष्ट आलोचनात्मकता के साथ उतरकर गझिन और कथा-तत्व से भरपूर कहानियाँ बुनना उन्होंने जिस तरह सिद्ध किया है, वह भाषा को एक भरोसा देता है। इस संग्रह में कहानियों को पढ़ते हुए पाठक को वापस यह विश्वास होगा कि बिना किसी आलंकारिकता के जीवन-यथार्थ को विश्वसनीय ढंग से पकडऩा आज के उथले समय में भी संभव है।

लेखिका के बारे में 
एम.ए. (हिन्दी), पी-एच.डी. (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी) से शिक्षा प्राप्त अल्पना मिश्र ने अनेक रचनाएँ प्रकाशित की हैं जिनमे शामिल है- भीतर का वक्त, छावनी में बेघर, कब्र भी कैद औ’ जंजीरें भी (कहानी); अन्हियारे तलछट में चमका (उपन्यास); कहानियाँ रिश्तों की : सहोदर (सम्पादन)। उनकी कहानियाँ, कविताएँ, समीक्षाएँ एवं लेख अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं l कुछ कहानियाँ पंजाबी, बांग्ला, कन्नड़, अंग्रेजी, मलयालम, जापानी, रूसी आदि भाषाओं में भी अनूदित हुई हैं । कुनूर विश्वविद्यालय, केरल; केरल विश्वविद्यालय, केरल; इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद; हिन्दी विद्यापीठ, त्रिवेन्द्रम; अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद आदि देश के अनेक विश्वविद्यालयों में बी.ए. तथा एम.ए. के पाठ्यक्रम में इनकी कहानियाँ शामिल हैं ।अल्पना मिश्र को शैलेश मटियानी स्मृति कथा सम्मान, परिवेश सम्मान, राष्ट्रीय रचनाकार सम्मान, शक्ति सम्मान, प्रेमचन्द स्मृति कथा सम्मान तथा भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता द्वारा सम्मानित किया गया हैl

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