नारी नर से भारी है फिर क्यों ये लाचारी है

नारी की लाचारी


नारी नर से भारी हैं
फिर क्यों ये लाचारी है
नारी से ही जन्मा है
और नारी को ही रोंदा हैं
अबला सबला समझ के तूने
नारी को पल पल कुचला है
नारी नर से भारी हैं
फिर क्यों ये लाचारी है
पिता बनकर उसे डराया
भाई बनकर हक है छीना
पति बना तो कैद में रखा
बेटा बनकर भूख से मारा

नारी की लाचारी
नारी की लाचारी

आम नागरिक बनकर तूने
सदा ही उसके सम्मान छीना
नारी नर से भारी हैं
फिर क्यों ये लाचारी है
अब ना किसी की ताना शाही
नारी पर चल पाएगी
तोड़ बेड़ियों की जंजीरें
जब नारी कदम बढ़ाएगी
बीच चौराहे पर जब रोदने वालों को
अब जिंदा आज जलाएगी
तब कहीं जाकर ये नारी
स्वतंत्रता पाएगी
नारी नर से भारी हैं
फ़िर क्यों ये लाचारी है
अपने हक के लिए सदा ही
रोती और बिलखती थी
अब नहीं सहेगी तानाशाही
नहीं चलेगी मनमानी
नारी के सम्मान को
नारी ही आज बचाएगी
एक साथ मिलकर जब नारी
नारी की गरिमा को समझेगी
तभी ये नारी अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों
का खुलकर विरोध कर पाएगी
नारी नर से भारी हैं
फिर क्यों ये लाचारी है
बलात्कारियों, दुराचारियों को मिलकर सजा सुनाएंगे
जिंदा हमें जलाया है तो जिंदा इन्हे जलायेगे
बीच चौराहे पर इनके अंग अंग
काटे जाएंगे, तब इनकी लाचारी पर
हमें तरस नहीं आएगा
तभी नारी के सम्मान और न्याय
की प्रक्रिया पूरी हो पाएगी
नारी नर से भारी हैं
फिर क्यों ये लाचारी है।
जागो नारी जागो
नारी ही नारी को सम्मान देकर
इस सब से बचा सकती हैं।

– संगी 

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