नारी विमर्श को धार देती प्रस्तुति: आध्या
पुरुष और नारी, प्रकृति ने ये दो ऐसे नायाब उपहार दिए हैं जिनमें न तो कोई एक श्रेष्ठ है और न ही कोई दूसरा निचले दर्जे का। हां, अगर नारी को उचित शिक्षा या अवसर न दिया जाए तो उनकी स्थिति भले ही अलग हो सकती है।
हमारे देश में प्राचीन काल में ऐसी अनेक नारियां हुई हैं, जिन्होंने ज्ञान विज्ञान, त्याग तपस्या, साहस का परिचय देकर अपनी एक खास पहचान बनाई है।वैदिक काल की एक ऐसी ही ज्ञान से परिपूर्ण नारी हुई है- गार्गी, उसी गार्गी के चरित्र के माध्यम से विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष में आज की नारी को प्रेरित करने की मंशा से एक नाटक बुना गया- आध्या प्रथमा या परिणति!
इस नाटक का लेखन व निर्देशन
रंगमंच से जुड़े वरिष्ठ नाटककार दिनेश वडेरा ने किया और यह मुद्रा आर्ट्स कोलकाता की प्रस्तुति थी।गौरतलब है कि लगातार कई दशकों से प्रस्तुतियां देते हुए यह उसकी एक सौवीं प्रस्तुति थी, इसके लिए प्रेक्षागृह में उपस्थित सभी दर्शकों ने करतल ध्वनि से दिनेश वडेरा को बधाई दी,क्योंकि किसी भी निर्देशक के लिए एक सौवीं प्रस्तुति खास मायने रखती है।
इस नाटक में एक नाटक को प्रस्तुत करने की तैयारी का दृश्य है, जिसमें रंगमंच के एक सिद्धस्त कलाकार रणवीर और एक महिला पात्र वासवी का वार्तालाप है, जिससे ये पता लगता है कि वासवी जो अपने पति को छोड़ कर आ चुकी है और अब उसने रणवीर के निर्देशन में कुछ नाटकों में सफल अभिनय कर अपना एक खास मुकाम हासिल कर लिया है।
वासवी और सूत्रधार की भूमिका में विजयलक्ष्मी यह बताती है कि एक और युवती नाटकों में अपनी पहचान बनाने के लिए निर्देशक से मिलने आई है। पहले तो रणवीर उसे कोई खास तवज्जो नहीं देता लेकिन फिर उसके अनुरोध और वासवी की अनुशंसा पर उसे गार्गी पर पुस्तकालय से किताबें खंगालने और रंगमंच के लायक एक प्रस्तुति तैयार करने का जिम्मा दे दिया जाता है। इस कार्य में वो नवागंतुक युवती आध्या सफल होती है और अपने संवाद प्रस्तुति से प्रभावित भी करती है,तो उसे ही गार्गी का चरित्र निभाने के लिए दिया जाता है और प्रोत्साहित भी किया जाता है। लेकिन मंचन के दिन ही आध्या जो एक विवाहित महिला है और एक बच्चे की मां भी है, उसका पति उसके साथ मारपीट करता है और उसे जाने से रोकने की चेष्टा करता है और यह धमकी भी देता है कि अगर हो गई तो फिर -डोंट कम बैक यानि वापस नहीं आना। अब तक आध्या के अंदर गार्गी के चरित्र को बार बार रिहर्सल में अभिनीत करते-करते आत्मविश्वास आ जाता है और वो घर छोड़कर चली जाती है और सफल अभिनय करती है, लेकिन अपने बच्चे की चिन्ता में मां के हृदय की तड़प भी दिखाई देती है। इस नाटक की प्रस्तुति में गार्गी के चरित्र में आध्या और याज्ञवल्क्य की भूमिका में रणवीर अपने अभिनय के माध्यम से प्रशंसित होते हैं।
वैदिक काल की उस कथा के अनुसार एक बार राजा जनक ने यज्ञ किया था और उसमें देश भर के उच्च कोटि के विद्वान उपस्थित हुए थे। राजा जनक के मन में ये विचार आया कि ये पता लगाया जाना चाहिए कि इनमें श्रेष्ठ विद्वान कौन है? इसके लिए उन्होंने आकर्षक पुरस्कार की भी घोषणा की और अपनी गौशाला से एक हजार चुनिंदा दुधारी गायों के सींगों पर सोना लगवा दिया और कहा कि जो सर्वश्रेष्ठ विद्वान हो वो सारी गायें ले जाए। ये सुनकर दरबार में कुछ देर तक खामोशी छाई रहती है और जब कोई भी विद्वान आगे नहीं आता, तभी वहां उपस्थित ऋषि याज्ञवल्क्य अपने शिष्यों से कहता है कि सारी गायों को हांक कर अपनी गौशाला में ले चलो। ऐसा सुनकर उपस्थित अन्य विद्वान उसे रोकते हैं और शास्त्रार्थ करने की चुनौती देते हैं।ऋषि याज्ञवल्क्य उस चुनौती को स्वीकार करता है, लेकिन कोई भी उपस्थित पंडित उससे शास्त्रार्थ में सफल नहीं हो पाता। अब तो याज्ञवल्क्य का रास्ता बिल्कुल साफ था, लेकिन तभी विदुषी गार्गी सभा में उपस्थित होती है और राजा जनक से अनुमति मांगती है कि उसे शास्त्रार्थ की अनुमति दी जाए। सभी पहले तो एक नारी द्वारा ऐसी चुनौती दिए जाने पर ही आश्चर्य करते हैं,लेकिन फिर अनुमति मिलने के बाद गार्गी द्वारा विद्वतापूर्ण प्रश्न किए गए देखकर सभी हतप्रभ हो जाते हैं और ऋषि याज्ञवल्क्य भी किसी तरह ही उत्तर दे पाता है। विदुषी गार्गी यहां किसी को नीचा दिखाने या फिर अपनी जीत के लिए नहीं आई थी, वो उस विद्वान याज्ञवल्क्य की प्रशंसा करती है और उसे विजयी घोषित होने की स्वीकृति देती है। विदुषी गार्गी के विद्वता पूर्ण प्रश्नों और तार्किक कथनों से सभी बेहद प्रभावित होते हैं और उसके द्वारा एक पुरुष के सम्मान को ठेस न लगने देने की मंशा से सभी प्रभावित होते हैं। राजा जनक भी अत्यंत प्रभावित होता है और गार्गी को ससम्मान अपने नवरत्नों में शामिल कर लेता है। इस वैदिक कथा के माध्यम से इस नाटक ने आज के नारी विमर्श को धार दी है और ये प्रतिपादित भी किया है कि नारी को अपने गुणों और विद्वता के बल पर ही अपने आप को स्थापित करना होगा और अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनानी होगी, तभी समाज में उसे अपना गौरवपूर्ण स्थान मिलेगा।
आध्या और गार्गी के रूप में प्रज्ञा गुप्ता ने अपना शानदार अभिनय किया और रणवीर तथा ऋषि याज्ञवल्क्य के पात्रों को शरद चटर्जी ने भी जीवंत किया। नाटक के प्रारंभ में शिव के रूप में प्रसून बनर्जी तथा पार्वती के रूप में राजनंदनी घोष ने मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया।इसके अलावा अन्य कलाकारों मसलन – मनीष रामूदामू, राजेश जायसवाल, देवराज शाह, सागर दोषी, प्रांजय गुप्ता, गणेश लखमण, अभिजीत दान ने भी पात्रों के अनुरूप अपने अभिनय को अंजाम दिया।
पात्रों द्वारा संवाद क्षेपण के समय कई बार तेज पार्श्व
संगीत व्यवधान उत्पन्न करता है,वैसे कुल मिलाकर इस प्रस्तुति को दर्शकों की भरपूर सराहना मिली,जो किसी भी लेखक/निर्देशक के लिए अनुपम उपहार है।
– रावेल पुष्प,
वरिष्ठ पत्रकार/ कवि
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