दरअसल खुश रहने का भ्रम देने वाली लड़कियाँ होती हैं…
हम नंगी आँखों से नहीं देख पाते
परत के नीचे छिपाने की उनकी जोरदार कोशिश
के कारण
हँसी की मोटी गर्द के नीचे इकठ्ठा उनका कोई दुःख
नहीं समझते या समझना चाहते कि
हंसने, बेतरतीब हंसने, लगातार-बेहिसाब हंसने…
के भीतर किस खूब तरीके से
अपना दुःख छुपा ले जाती लड़कियाँ…
…यक़ीनन बहुत बड़ी कलाकार होती हैं.
या तो हमें उनकी हँसी से रश्क होता है,
या गुस्सा आता है, या
यही कि हम नहीं सोचना चाहते
लफंगी लगने की हद तक…
हँसती हुई लड़कियों के बारे में नैतिक होकर
हमें तो सिर्फ़ उनकी हँसी से मतलब होता है
इसलिए सिर्फ़ भली लगती हैं,
बहुत ज्यादा हँसती हुई लड़कियाँ.
बहुत ज्यादा हँसती हुई लड़कियाँ
ताली बजा-बजा कर हँसती हुई लड़कियाँ,
कभी दुपट्टे की ओट से हँसती हुईं,
कभी सरे-राह मार ठहाका हँसती हुईं…
साझा नहीं करतीं
अपनी धडकनों में बजते दुःखों को
वह हंसतीं हैं…
कि हँसने की मजबूरी से लाचार
निबटाते हुए दैनिक क्रियाकलाप… हँसते-हँसते
दिन गुजारा करती हैं
अगर कभी हँसी रुक जाती है
आसपास के कई लोग कई तरह से, और के
सवाल करते हैं…
क्या राज है उनके गुमसुम होने का
कोंच-कोंच कर पूछते हैं…
खुलेआम और अचानक उदास होना लड़कियों के लिए कुफ़्र है,
दुर्घटना है… इल्जाम है…
उदास लड़कियाँ भी बदनाम हो जाती हैं…
जवाबदेह हो जाती हैं…!
इसलिए रोने से बचने की कोशिश में ही
हँसती हैं लड़कियाँ
बहुत ज्यादा हँसती हैं लड़कियाँ…
यह कविता शेखर मल्लिक द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है. आप वर्तमान में प्रलेसं की जमशेदपुर की इकाई से सम्बद्ध है और स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य से जुड़े हुए है.