स्वामी की भी पैरवी , दिला न पाई बेल l
गलबहियां जैसी पडी , कब रूठेगी जेल ll
व्यापम खूनी खेल है, चुप है अब भोपाल l
चुल्लू की अब क्या कहें , डूब रहे हैं ताल ll
प्याऊ तो ठप हो गईं ,बिसलेरी का नीर l
जस आरक्षण हो गया , पुश्तेनी जागीर ll
पीक मारका बोलते, एसे कुजरब बान l
खाएं , पगलाए रहें , खेनी वाला पान ll
सब जिंसें करने लगीं , स्वर्णनखा सिंगार l
क्षेत्रपाल शर्मा |
लकमे, कोलों आदि के , गली गली अवतार ll
आवारा पूंजी का ललित ,जब बहता सैलाब l
पानी सूखे या रहे, ठेठ आब ही आब ll
चितकबरे होने लगे , नेताओं के काम l
अब नहान भी हो गया , कुल हमाम के नाम ll
संसद की केंटीन का ,कब हो थाल नसीब l
माननीय सब हो गए , इतने निपटु रकीब ll
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .