बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं

जलजले
कोरोना महामारी विशेष पर एक कविता सादर समर्पित

         
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।
  इस जलजले में हवाएं गुम है
  सूरज भी कहीं गुमसुम है
  सुनी है पत्तो की सरसराहट
  सता रही काली रातों की आहट
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  सुनी है गांव की पगडंडियां
  तड़प उठी हैं सारी वादियां
  आवाज़ कैद है दीवारों में
  आसमां चुप है सितारों में
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

जलजले

 शहर,नगर तड़प उठें है
  गांव-गांव फड़क उठें है
  सड़कें बेहाल क्या कहूं
  लोगों का हाल क्या कहूं
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  भूख उठी है जन-जन में
  डर व्याप्त है मन-मन में
  हाय मासूमों का अब क्या होगा
  खामोश आंखों का अब क्या होगा
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  रूक गयी जीवन की धारा
  बिलख रहा संसार सारा
  रूठ गयी जीवन की खुशियां
  भय से दुःख रही है अखियां
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  सांसे रूकी है भूख के मारे
  क्या करेंगे मजदूर बेचारे
  हाय टूट गया अपनों का प्यार
  रो रहे सब घर और द्वार
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  मां से अपने बिछड़े बच्चे
  दूर है कितने घर के बच्चे
  बे-मंजिल कई रास्ते हैं
  अभी न जाने कितनी रातें है
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  ताड़व कर रही है मौतें
  झन-झन नाच रही है मौतें
  विश्व बिलबिला रहा है कैसे
  धरा धॅ़ंस रही दलदल में कैसे
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  कहीं भूख है कहीं प्यास है
  कहीं मौतें कहीं आस है
  दुनिया जैसे विरान पड़ी है
  यह कैसी आफत आन पड़ी है
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  निराधार हो गया जीवन हमारा
  कैसे बिलख रहा देश हमारा
  तरस गये बच्चे दूध और पानी से
  कितने बेबस है ये जिन्दगानी से
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  कहां गए दुआएं सजदे
  जो लोगों का विषाद हर ले
  क्या होगा परिणाम इस जलजले का
  कब कम होगा जीवन फासले का
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।

  अपाहिज हो गये सम्बल हो कर
  सिकुड़ गये हम बल हो कर
  न पत्थर, पानी न उबड़-खाबड़
  थम गई रफ़्तार भागम-भागड़
  तो बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं
  बोलो कैसे तुम्हें पुकारूं।


   — राहुलदेव गौतम

  

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