भीनी भीनी भोर भई

भीनी भीनी भोर भई

“भीनी भीनी भोर भई..”

| नयी सुबह और नयी राग ||
भीनी भीनी भोर आयी
कण कण पे छिड़के रौशनी 
क्या उजियारा , क्या अँधियारा 
बतलाती भीनी भीनी भोर आयी..
वह क्या सुबहें थी 
सुबह
वोह क्या राग थी 
विद्या अर्जन के लिए वह क्या साधना थी 
हम क्या किसी नवजात को समझायेंगे ?
या कैसे किसी के बचपन को दिखायेंगे
वह राग, वह संगीत, कच्ची सड़के
स्लेट और अध्यापक की सीख
मासूम से खेल, नोक-झोक की रीत 
माँ- बाप का दर्जा,
रिवाज़ और संस्कृति के बीज
वह सोने की चिड़िया की शान
अपनी भाषा में ज्ञान और गान …
जब वोह आज़ाद होकर भी 
बिना किसी डर के रोज़ 
“सुप्रभात”…का ….”good morning” और ” जय गणेश” ..का ” whatsup “. 
कर के बेरुखी से “school ” चले जाएंगे
google को ‘my-बाप’ समझ 
छोटी सी परेशानी को भी “its complicated” बताएंगे
“पिंड दान” छोड़िये 
“pollution , global warming , caste system और corruption को पुरखो का उनको ‘दान’ बताएंगे
स्वदेश ऋण तोह बाद की बात है, 
‘स्टूडेंट लोन’ फॉर ‘studies abroad ‘ की आहुतियों में,
हसीन लम्हे झुक जायेंगे |
इस नयी राग – ‘tech’ और धुन -‘ advancement ‘ को टोकियेगा नहीं
जवाब में –
गांधी का समलदास कॉलेज छोड़ इंग्लैंड जाके लॉ पढ़ना, 
नेहरू का आजादी की शाम-इ-जश्न पर संसद में सम्बोधन,
‘नयी सुबह के साथ गुफ्तगू’ या ‘ भारत के भाग्य के साथ रुबबरु” ना हो कर हिंदी भाषी देश को “”tryst with destiny “” होने का,
और कई सुबहो की भटकी हुई सी कहानियो 
का कारण समझा नहीं पाएंगे..
चलो आज से दो सुबह मनायें
एक जो बहार है और एक अपने अंदर जगाये..
वह भी 
भीनी भीनी सी आये 
कण कण रौशनी छिड़कायें 
क्या उजियारा , क्या अँधियारा 
बतलाती जाये …
भीनी भीनी सी एक और उजियारी भोर आये…||
                                                       


 -नम्रता ‘वाचसोच’

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