भूख और मैं

भूख और मैं

हरा रंग है धरती का
घर का आंगन सुखा-सुखा है
पेट है घर भी है खाली
तो हर बात रुखा-रुखा है

सड़ गये अनाज गोदामों में
भूख पर जुलूसें है
न्याय के अंधेरी गलियों में
फिर से गहमागहमी है

भूख और मैं

मेरे घर का पूरा हिस्सा
आजकल भूखा-भूखा है।

मां रोती, बाबूजी रोते
बच्चे अलग हिचकाते हैं
कर्ज में बिक गए जमीन-खलिहानें
मड़ई में रोता छोटा भाई है
चार दिन से चूल्हे में
फिर से फांका-फांका है।

घर के आगे द्वारे पर
पकड़ी का पेड़ सहारा है
गुल्लर गिरती चींटी गिरती
दौड़ बीन लाता हूं
है भूख की रोटी वहीं
सांझ सवेरे मेरे घर की
वहीं आटा-आटा है।

     


-राहुलदेव गौतम

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