कंजूस राजा / बाल कहानियाँ

कंजूस राजा
चन्द्रपुर
का राजा अपने कंजूस स्वभाव के नाम से जाना जाता था। वह मजदूरों से काम
करवाता, किसानों से अनाज लेता, सुनारों से आभूषण बनवाता पर पैसा देते वक्त
कुछ भी मनगढ़ंत किस्सा बनाकर उन्हें खाली हाथ भिजवा देता। लोग चुप रहते।
आखिर राजा से कौन बहस करता। फिर भी राजा के इस आचरण से त्रसित होकर सुनार
नकली आभूषण देने लगे और व्यापारी मिलावटी माल व किसान खराब अनाज राजा के
पास पहुँचाने लगे। खराब अनाज व मिलावटी चीजों के सेवन से राजा की तबीयत
खराब रहने लगी। वह बिस्तर से लग गया। राजा ने मंत्री से कहकर देवशर्मा नामक
वैध को बुलवाया। राजा की सेहत का सवाल था, इसलिये देवशर्मा ने महंगी
जड़ी-बूटी लेकर दवा बनाई और राजा को दी। राजा की तबीयत एकदम ठीक हो गई।
परन्तु
जब वैध को पैसे देने की बात आयी तो राजा ने कहा, ‘ वैधजी, कल सपने में
मेरे पिताश्री ने बताया कि तुम्हारे पिता उनके खास वैध थे और उन्होंने खुश
होकर तुम्हारे पिता को पेशगी बतौर बहुत सारा पैसा दिया था और कहा था कि वे
अपने बेटे को भी वैध बनाये ताकि वह भी उनकी तरह मेरे पिताश्री के बेटे याने
मेरी चिकित्सा अच्छे से करे। सो तो तुम कर ही रहे हो और इस काम का पैसा
तुम्हारे पिता मेरे पिता से पहले ही पेशगी बतौर ले चुके हैं।’
भूपेन्द्र कुमार दवे
यह
सुन देवशर्मा चुप रहा और खाली हाथ घर लौट आया। कुछ दिनों बाद राजा की
तबीयत फिर बिगड़ी और देवशर्मा को पुनः बुलवाया गया। देवशर्मा इस समय सतर्क
था। उसने राजा से कहा, ‘राजन्! कल ही मुझे सपने में मेरे पिताजी ने बताया
कि वे आपके पिताश्री का बहुत सम्मान करते थे। पेशगी बतौर पैसे पाकर मेरे
पिताजी ने आपके पिताश्री से कहा, ‘पता नहीं कि मेरा बेटा मेरे जैसा अच्छा
वैध बन पावेगा या नहीं। इसलिये हे राजन्, आपने जो पैसे दिये हैं उससे मैने
बहुत ही कीमती और बढ़िया बवा बनाई है जिसे आप ले लेंगे तो आपका बेटा कभी
बीमार पड़ेगा ही नहीं और बीमार हुआ भी तो अपने आप ठीक हो जावेगा।’
  वह दवा आपके पिताश्री ने ले ली थी। अतः आप निष्चिंत रहें। आप की तबीयत अपने आप ठीक हो जावेगी।’
यह बात सुन राजा की आँखें खुल गयी और उसका कंजूसी रफूचक्कर हो गई।

 यह रचना भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है. आप मध्यप्रदेश विद्युत्
मंडल से सम्बद्ध रहे हैं . आपकी कुछ कहानियाँ व कवितायें आकाशवाणी से भी
प्रसारित हो चुकी है . ‘बंद दरवाजे और अन्य कहानियाँ‘ ,’बूंद- बूंद  आँसू
आदि आपकी प्रकाशित कृतियाँ है .

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