मंदिर में वही मस्जिद में वही
एक बात है सही
मंदिर में है वही,
मस्जिद में वही
जरूरत है आज सबकी एक ही
मिले मंदिर तो सर झुकाओ,
मस्जिद को सलाम बजाओ!
पुराण भी वही,
कुरान भी वही
बशर्ते कि त्याग दो सारे लबादे,
सिर्फ याद करो मानवता के वादे
कि मेरा भी रक्त लाल,
तुम्हारा भी रक्त लाल
शिराओं के भीतर जो बहती
मानव की एक मात्र शक्ति
बहने ना लग जाए
नालियों में सरेआम!
वरना कुछ भी ना सही,
नाम मन्दिर,ना मस्जिद
ना भगवान ना रहमान
सिवा एक दृश्य मौत का
जिसके पीछे कुछ भी नहीं
हम भी नहीं,तुम भी नहीं
नहीं पुत्र, नहीं नारी,
ना शत्रुता, ना यारी,
कुछ नहीं, कुछ भी नहीं!
किंतु जब तक होगा नहीं
अस्तित्व हमारा तुम्हारा
तबतक काबा औ’ काशी
एक बीमारी है मौत की
एकमात्र सत्य है मानव
मानव ने भगवान जना,
पैदा किया खुदा को भी
चाहे मजहब हो कोई भी!
जब मानव की ही कृति
बनने लग जाए विकृति,
तो त्याग दो ऐसी नियति
चाहे जो भी हो स्थिति
धर्म को बदलती परिस्थिति!