अहिंसक बना अंगुलिमाल

अहिंसक बना अंगुलिमाल

“आज जगाने आया हूं
तूफान है बवंडर का।
नदी से जी नहीं भरता
इतिहास हूं समंदर का।”
आज के युग में अगर हम सुनते हैं कि अंगुलिमाल एक बड़ा क्रूर डाकू था पर वह डाकू कैसे बना यह कोई नहीं जानता तो आइए मैं आपको उसकी सच्ची कहानी से अवगत कराना चाहता हूं।
“यही कहानी सब से कहती
जैसे बहता पानी।
जो सुंदर है, अद्भुत भी है
अंगुलिमाल की कहानी।”
अंगुलिमाल का जन्म श्रावस्ती में राजा प्रसनजीत के घर में बताया गया है, जो जो बाल्यकाल में बहुत विद्वान शीलवान व युद्ध कौशल में पारंगत था।वह अपने गुरुवों का आदर करता था।अंगुलिमाल ने चारों वेद कंठस्थ याद कर लिए थे।
“जो एक वेद को पढ़ लेता था उसको स्नातक की उपाधि दिया जाता था।”
“जो दो वेदों का ज्ञाता होता था उसको वसु की उपाधि दी जाती थी।”
“जो तीनों वेदों को पढ़ लेता था उसे रूद्र की उपाधि दी जाती थी”
और जो चारों वेद पढ़ लेता था उसे आदित्य की उपाधि दी जाती थी।
अहिंसक बना अंगुलिमाल
अहिंसक बना अंगुलिमाल
अंगुलिमाल का असली नाम अहिंसक था उस अहिंसक ने बचपन में ही चारों वेद कंठस्थ याद कर लिए थे। गुरुकुल में सारे विद्यार्थी उससे  ईर्ष्या करते थे।उन्होंने सोचा कि हम इसको गुरुकुल से निकाल कर ही दम लेंगे।
सारे विद्यार्थियों ने एक दिन अपने गुरु से कहा कि अहिंसक आपकी हर दिन बुराई करता है।गुरु ने भी बिना कुछ कहे उसे विद्यालय से निष्कासित कर दिया।जैसे ही वो अपने राज्य गया तो राजा ने भी उसे गृह  से निकाल दिया।
अहिंसक जहां जहां भी जाता तो वहां के लोग उसे पत्थर मारते थे और वो विद्यार्थी जिन्होंने उसके लिए षड्यंत्र रचा था वो भी उसका उपहास उड़ाते ,जाते – जाते एक दिन वह किसी पेड़ के नीचे बैठा था।वहां पर एक डाकू आ गया उसने उससे कहा”तुम्हारे पास जो कुछ भी है मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हें मार दूंगा।
अहिंसक – घायल शेर को मत छेड़ो चीर फाड़ कर डालेगा उसने उस डाकू से कटार छीन लिया और उसे बहुत मारा तथा वह डाकू तो भाग गया।
अहिंसक की सौगंध -“जिन_जिन लोगों ने मुझ पर उंगलियां उठाई है मैं उनकी एक -एक उंगली काट कर माला पहनूंगा।तब से वह अहिंसक अंगुलिमाल डाकू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
“एक फूल भी अंगार बन जाता है जब उसकी मजबूरियां तथा लोगों के द्वारा सताए गए जो व्यक्ति होता है।”
एक दिन गौतम बुद्ध उस वीरान जंगल में अकेले घूम रहे थे तो उन्हें रास्ते में अंगुलिमाल मिल गया।
अंगुलिमाल -“ए सन्यासी कहां जाता है, तुझे मुझसे भय नहीं लग रहा है?
भगवान बुद्ध -“मुझे तुमसे किस बात का भय, तुम भी तो एक मनुष्य हो तो मनुष्य एक परमात्मा का अंश।
अंगुलिमाल – कहां भागता है सन्यासी?’
गौतम बुद्ध -“मैं तो चल रहा हूं पर तुम थक गए हो।
गौतम बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा -“हे अंगुलिमाल तुम इस पीपल के वृक्ष से कुछ पत्ते तोड़कर मुझे दे सकते हो?
अंगुलिमाल ने कुछ पत्ते पीपल के तोड़कर भगवान बुद्ध को दिया।
भगवान बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा कि ये पत्ते जहां से तोड़े वही चिपका दो।
“अंगुलिमाल ने कहा कि यहां मैं कैसे चिपकाऊंगा?”
भगवान बुद्ध ने कहा -“ठीक उसी प्रकार जहां से तुमने पत्ते तोड़े उनको तुम उसी स्थान पर चिपका नहीं सकते जैसे तुम कई लोगों की हत्या करते हो लेकिन उनके प्राण वापस थोड़ी कर सकते हो, तुम अब सारे अपने कुकर्म छोड़ दो।
अंगुलिमाल -“क्या अब डाकू एक अच्छा व्यक्ति बन सकता है?
भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया -“तुम भी तो एक इंसान हो और तुम लोगों के द्वारा सताए गए हो इसलिए आज से मैं तुम्हें अपना शिष्य घोषित करता हूं।”
गौतम बुद्ध ने  अंगुलिमाल को अरिहंत नाम दिया।
“जैसे पारस के छूने पर लोहा भी सोना बन जाता है उसी प्रकार एक भयानक डाकू अंगुलिमाल से अरिहंत बन गया।




– नरेंद्र भाकुनी
M.A (हिंदी इतिहास) ,बीएड

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