आपका बंटी और महाभोज जैसे चर्चित उपन्यासों की रचनाकार मन्नू भण्डारी नही रहीं
आपका बंटी और महाभोज जैसे चर्चित उपन्यासों और अनेक कहानियों की रचनाकार मन्नू भण्डारी हमारे बीच नहीं रहीं। वे कुछ समय से अस्वस्थ थीं और एक सप्ताह उपचाराधीन रहने के उपरांत आज 15 नवंबर को अस्पताल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। कल दोपहर 12.30 बजे लोधी रोड, नई दिल्ली स्थित विद्युत शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने इस शोकपूर्ण अवसर पर मन्नू जी को याद करते हुए बताया कि उनकी लगभग सभी किताबें राधाकृष्ण प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई हैं और वे हिन्दी के सबसे ज्यादा पढे जाने वाले लेखकों में रही हैं। प्रकाशक के रूप में हमें हमेशा उनकी रचनात्मकता और सहयोगी भाव ने प्रभावित किया। उनके न रहने से हिन्दी के पटल पर एक बड़ी जगह खाली हो गई है जो हमेशा हमें उनकी अनुपस्थिति का भान कराती रहेगी।
मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई अजमेर, राजस्थान में हुई। कोलकाता एवं बनारस विश्वविद्यालयों से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। पेशे से अध्यापक मन्नू जी ने लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया।
हिन्दी साहित्य के अग्रणी लेखकों में गिनी जाने वालीं मन्नू भण्डारी ने बिना किसी वाद या आंदोलन का सहारा लिए हिन्दी कहानी को पठनीयता और लोकप्रियता के नए आयाम दिए। ‘यही सच है’ शीर्षक उनकी कहानी पर आधारित बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म ‘रजनीगंधा’ ने साहित्य और जनप्रिय सिनेमा के बीच एक नया रिश्ता बनाया। बासु चटर्जी के लिए उन्होंने कुछ और फिल्में भी लिखीं। उनकी कई कहानियों का नाट्य-मंचन भी हुआ। ‘महाभोज’ उपन्यास का उनका नाट्य-रूपांतरण आज भी देश भर में अनेक रंगमंडलों द्वारा खेला जाता है।
उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ को दाम्पत्य जीवन तथा बाल-मनोविज्ञान के संदर्भ में एक अनुपम रचना माना जाता है। जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने ‘एक कहानी यह भी’ नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी जिसे मध्यवर्गीय परिवेश में पली-बढ़ी एक साधारण स्त्री के लेखक बनने की दस्तावेजी यात्रा के रूप में पढ़ा जाता है।
हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार एवं संपादक राजेन्द्र यादव की जीवन-संगिनी रहीं मन्नू जी ने अपने लेखन में स्वतंत्रता-बाद की भारतीय स्त्री के मन को एक प्रामाणिक स्वर दिया और परिवार की चहारदीवारी में विकल बदलाव की आकांक्षाओं को रेखांकित किया।
राजकमल प्रकाशन समूह उनकी स्मृति को वंदन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।