माँ की टोकरी
सरसराती हवा ने
धकेल दी
फूलों से भरी
टोकरी
खामोश घूँर उठीं
आसपास
अनेकों लताएँ
डालियाँ मस्तमौला सी
किन्तु अधर सींकें
बैठीं
दूब
फैली जमीन पर
जैसे किसी चंगुल से
छूट
भागी हो
पाँव दबाकर I
बूढी माँ
हड्डियों पर
जोर देकर
उठा लेती
टोकरी
समेटकर फूलों को,
सजाकर सिर पर
चली जाती
गाती गीत मधुर
घर अपने
आँगन अपने
पग गाढती
धूल में I
यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 , ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.
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