माँ चाहती थी

माँ चाहती थी

उसे तो पतझड़ में खिलने की आदत है, 
वो बहार चाहती थी सिर्फ तुम्हारे लिए। 
उसकी ज़िन्दगी चिरागों से गुजर जाती, 
उसे सूरज चाहिए था सिर्फ तुम्हारे लिए। 
विनोद कुमार दवे
विनोद कुमार दवे
तबस्सुम उसके लबों से बैर रखती थी, 
वो मुस्कराती थी, सिर्फ तुम्हारे लिए। 
ख़ुदा की भी शान में भी कसीदे नहीं पढ़े, 
वो गीत गाती थी सिर्फ तुम्हारे लिए। 
मुमकिन होता अगर तुझे अपनी जिंदगी देना, 
वो रूह त्याग देती सिर्फ तुम्हारे लिए। 

2. क्यों है 

हवा में ये अजीब सी नमी क्यों है, 
आफ़ताब की आँखों में शर्मिंदगी क्यों है। 
मुझे तो तुमसे दोस्ती लगती थी, 
तेरी मुझसे दुश्मनी क्यों है। 
ज़िन्दगी भर दूसरों की फिक्र करता रहा, 
मुझे खुद की इतनी बेक़द्री क्यों है। 
माहताब तो खुद के दम पर रोशन नहीं, 
उसकी पेशानी पर इतनी रोशनी क्यों है। 
चेहरा तो उम्र के सफर में थका सा लगता है, 
तेरी आँखों में इतनी ताजगी क्यों है। 
ख़्वाब तो इतने बड़े-बड़े देखे थे, 
छोटी मगर ये ज़िन्दगी क्यों है। 

3.लोग 

कितनी मुसीबतों को सहते है लोग, 
पता नहीं कैसे खुश रहते है लोग। 
शर्म-ओ-हया को खूंटियों पर टांग आए है, 
चुल्लू भर पानी में भी बहते है लोग। 
हमाम के नंगो ने भी ऐसी बेशर्मी न की होगी, 
कपड़ों पर जिस्म को पहने है लोग। 
मुंह पर कह दो, बुरा नहीं मानता, 
पीठ पीछे जाने क्या कहते है लोग। 
सीना तान कर फिरा करते थे मुद्दतों से, 
पल में ही जाने कैसे ढहते है लोग। 

यह रचना विनोद कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है .आपकी,पत्र पत्रिकाओं यथा, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी,  कादम्बिनी , बाल भास्कर आदि  में कुछ रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं ।आप वर्त्तमान में अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत हैं .
सपंर्क सूत्र –
विनोद कुमार दवे
206
बड़ी ब्रह्मपुरी
मुकाम पोस्ट=भाटून्द
तहसील =बाली
जिला= पाली
राजस्थान
306707
मोबाइल=9166280718
ईमेल = davevinod14@gmail.com

You May Also Like