रावण

रावण

रावणनिस्तब्ध वीरानों में, आस्तीन के साँप भी,
कितने अपने से लगते हैं ।
डस लेने के भय से,
ज़िंदा रहने का अहसास बना रहता है ।।

चलो अच्छा है, हर वर्ष हम,
रावण को जलाते रहते हैं ।
राम को ज़िंदा रखने का,
प्रयास बना रहता है ।।

क्योंकि राम तो अब हम,
बन न पाएंगे कभी, तय है ।
रावण को जलाते रहने का,
उल्लास बना रहता है ।।

कितनी नफरतें बढ़ गईं हैं,
हमारे-अपनों के बीच में,
त्योहारों का मन भी कितना,
उदास बना रहता है ।।

काश ! कि ये रावण जल जाएँ
जो इस दशहरे में,
मन-ग्रथियाँ सुलझें, प्रफुल्लित हो सकें हम भी,
पर्वों से ही जीवन का हास बना रहता है ।।

कितना अच्छा हो कि ये आस
पूरी हो जाए,
अपनों के साथ से दूर,
अपने होने का विश्वास बना रहता है ।

डॉ.
शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन
कार्य कर रही हैं । उनकी पुस्तक “भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र” को राजभाषा
विभाग के “राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012” से
सम्मानित किया गया है । उनकी पुस्तक “धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से
स्वप्न की ओर” देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई
है । इसके अलावा जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा प्रकाशक एवं संपादक
राघवेन्द्र ठाकुर के संपादन में प्रकाशनाधीन महिला रचनाकारों की महत्वपूर्ण
पुस्तक “भारत की प्रतिभाशाली कवयित्रियाँ” और काव्य संग्रह “प्रेम काव्य
सागर” में भी डॉ. शुभ्रता की कविताओं को शामिल किया गया है । मध्यप्रदेश
हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा
संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्रा के साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी
गौरव सम्मान प्रदान किया गया है।

          संपर्क सूत्र –  डॉ. शुभ्रता मिश्रा ,स्वतंत्र लेखिका, वास्को-द-गामा, गोवा, मोबाइलः :08975245042,

          ईमेलः shubhrataravi@gmail.com

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