माटी वाली विद्यासागर नौटियाल

माटी वाली विद्यासागर नौटियाल          

माटी वाली माटी वाली NCERT Hindi Book for Class 9 Mati Wali extra questions माटी वाली का चरित्र चित्रण कक्षा 9 हिंदी कृतिका की एनसीईआरटी समाधान माटी वाली सचमुच दलित शोषित और लाचार है स्पष्ट कीजिए माटी वाली कहानी के लेखक हैं mati wali writer mati wali summary mati wali extra questions mati wali gadi summary of kritika class 9 chapter 4 ncert solutions for class 9 hindi kritika chapter 4 short answer class 9 hindi kritika chapter 5 question answer class 9 hindi kritika chapter 5 summary माटी वाली क्या काम करती थी? माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है ? कक्षा 9 हिंदी कृतिका की एनसीईआरटी समाधान

माटी वाली कहानी का सारांश 

माटी वाली पाठ या कहानी माटी वाली लेखक विद्यासागर नौटियाल जी के द्वारा लिखित है | यह कहानी टिहरी शहर की है | इस कहानी के माध्यम से लेखक ने टिहरी शहर के विस्थापनों के दर्द को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है | लेखक के अनुसार, माटी वाली बुढ़िया ने अपने सिर पर रखा माटी से भरा कनस्तर के बोझ को नीचे उतार कर रख दिया |शहर में हर कोई उस बुढ़िया को जानता था | टिहरी शहर का ऐसा कोई भी घर बाकी नहीं रहा होगा, जहाँ पर बुढ़िया लाल मिट्टी न देती हो | टिहरी वाले उस लाल मिट्टी का उपयोग चूल्हे-चौके की लिपाई और मकान के कमरे-दीवारों की लिपाई-पोताई के लिए भी किया करते थे | घर-घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक हरिजन बुढ़िया थी |
एक बार माटी वाली ने अपने कनस्तर को सिर पर से उतारकर रखा ही था कि सामने घर से नौ-दस साल की एक छोटी लड़की, जिसका नाम ‘कामिनी’ था, वह दौड़ती हुई वहाँ पहुँची और माटी वाली बुढ़िया से कहा — ” मेरी माँ ने कहा है, ज़रा हमारे यहाँ भी आ जाना |”
” अभी आती हूँ…” — बुढ़िया ने जवाब दिया |
जब माटी वाली ने बच्ची के कहने पर उसके घर गई तो घर की मालकिन ने माटी वाली को अपने कनस्तर की
माटी वाली विद्यासागर नौटियाल
माटी वाली विद्यासागर नौटियाल

माटी कच्चे आँगन के एक कोने में उड़ेल देने को कहा | तत्पश्चात्, मालकिन ने उस बुढ़िया को खाने के लिए अपने रसोई से दो रोटी लाकर दी और वह पुनः रसोई चली गई | मालकिन के अंदर जाते ही बुढ़िया ने तुरंत अपने सिर पर से डिल्ले के कपड़े उतारा और उसे एक झटके में सीधा कर दिया | तत्पश्चात्, वह दो रोटी में से एक रोटी को उस डिल्ले के कपड़े में गाँठ बाँधकर रख ली | साथ ही अपना मुँह चलाकर खाने का दिखावा करने लगी | तभी घर की मालकिन पीतल के गिलास में चाय लेकर आई और बुढ़िया के पास ज़मीन पर रख दी | पीतल का गिलास देखकर उस बुढ़िया ने घर की मालकिन से कहा — ” तुमने अभी तक पीतल के गिलास सँभालकर रखा हुआ है | अब कहीं या किसी घर में ये गिलास देखने को नहीं मिलता है |

तभी घर की मालकिन ने जवाब में बोला — ” इस पीतल के खरीददार कई बार हमारे घर के चक्कर काटे, पर मैंने पुरखों की इस कीमती निशानी को कभी बिकने नहीं दिया | बाजार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगता है | अब काँसे के बर्तन भी गायब हो गए हैं सब घरों से…|” मालकिन आगे कहती हैं कि अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है | मैं तो ये सोचकर पागल हो जाती हूँ कि अब इस उम्र में टिहरी शहर को छोड़कर जाएँगे कहाँ ! 
इतने में उस माटी वाली औरत बोलती है — ” ठकुराइन जी, जो ज़मीन-जायदादों के मालिक हैं, वे तो कहीं न कहीं ठिकाने पर चले जाएँगे | पर मैं सोचती हूँ मेरा क्या होगा ! मेरी तरफ़ देखने वाला तो कोई भी नहीं |”
लेखक के अनुसार, तत्पश्चात्, माटी वाली ने चाय ख़त्म करके अपना सामान उठाई और वहाँ से निकलकर सामने के घर में चली गई | उस घर में भी उसे मिट्टी लाने के बदले दो रोटियाँ दे दी गई | उस रोटी को भी उसने बाँध लिया | दरअसल, वह रोटी बुढ़िया अपने बुड्ढे (पति) के लिए ले जा रही थी | आज वह घर पहुँचते ही तीन रोटियाँ बुड्ढे को दे देगी और बुड्ढा रोटियाँ देखकर खुश हो जाएगा |
माटी वाली का गाँव टिहरी शहर से इतना दूरी पर है कि उसे वहाँ तक पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लग जाता है | रोज सुबह वह अपने घर से निकल जाती है | पूरा दिन माटाखान में मिट्टी खोदने, फिर अलग-अलग स्थानों में फैले घरों तक उसे ढोने में बीत जाता है | उसके घर लौटते-लौटते अंधेरा छा जाता है | उसके पास अपना कोई खेत नहीं है | गाँव के एक ठाकुर की जमीन पर उसकी झोपड़ी खड़ी है | जमीन के बदले उस गरीब बुढ़िया को ठाकुर के घर बेगार करना पड़ता था | माटी वाली बुढ़िया मन ही मन बोली जा रही थी कि आज वह अपने बुड्ढे को केवल रोटियाँ नहीं देंगी | माटी बेचकर जो पैसा आया, उससे वह एक पाव प्याज भी खरीद ली, ताकि अपने पति को रोटी के साथ सब्जी भी परोसकर दे सके | मन में और भी कई तरह की बातें सोचती और हिसाब लगाती हुई वह अपने घर पहुँची गई | परन्तु, अफ़सोस की हर रोज की तरह आज बुड्ढा माटी वाली को देखकर चौंका नहीं और न ही किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दी | घबराई हुई माटी वाली ने जब अपने पति को छूकर देखा, तब पता चला कि वह सदा के लिए अपनी माटी को छोड़कर जा चुका था |
टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने जब माटी वाली बुढ़िया से उसके जमीन का पेपर माँगा तो वह नहीं दे पायी | क्योंकि उसके पास अपना कोई जमीन ही नहीं थी | वह माटी बेचकर किसी प्रकार गुजारा किया करती थी | तत्पश्चात्, टिहरी बाँध के दो सुरंगों को बंद कर दिया गया था | शहर में पानी भर जाने के कारण आपाधापी मचने लगी | शहरवासी अपने-अपने घरों को छोड़कर वहाँ से भागने लगे | माटी वाली अपने घर के बाहर चिंतित अवस्था में बैठी है | गाँव के सभी आवागमन करने वालों से वह एक ही बात कर रही थी — ” गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए…||”

माटी वाली का चरित्र चित्रण   

character sketch of mati Wali hindi kritika माटी वाली कहानी विद्यासागर नौटियाल जी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध कहानी है। प्रस्तुत पाठ के अनुसार, माटी वाली का जीवन अत्यन्त संघर्षपूर्ण था | वह बहुत मेहनती और दुखियारी वृद्धा थी | उसे अपने साथ-साथ वृद्ध व अशक्त पति का भी देख-रेख करना पड़ता था | उसे माटाखान से मिट्टी खोदने और टिहरी शहर में घर-घर तक पहुँचाने में दिन भर का समय लग जाता था, जो उसकी कर्मठता की ओर इशारा करता है | कभी-कभार उसे मिट्टी के बदले दो-तीन रोटियाँ नसीब हो जाती थीं, जिसमें से वह कुछ रोटी अपने बूढ़े पति के लिए भी बचाकर ले जाती थी | जब टिहरी शहर को बाँध का पानी डूबो रहा था, तब माटी वाली चिंतित अवस्था में अपने घर के बाहर बैठी थी | उसकी दृढ़ता और वफ़ादारी का यह सबूत ही था कि वह मृत पति का साथ विदाई के अंतिम क्षणों में नहीं छोड़ी थी…||

माटी वाली पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 ‘शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं |’ आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सब पहचानते थे ?

उत्तर- माटी वाली अकेली बुढ़िया थी, जो पूरे टिहरी शहर में हर घर में लाल मिट्टी की जरूरत को पूरा करती थी | टिहरी वाले उस लाल मिट्टी का उपयोग चूल्हे-चौके की लिपाई और मकान के कमरे-दीवारों की लिपाई-पोताई के लिए भी किया करते थे | उस शहर में बुढ़िया का कोई प्रतिद्वंदी नहीं था | उसका कनस्तर बिना ढक्क्न का हुआ करता था, जिसे हर कोई देखते ही पहचान लेते थे | इसलिए कहा गया कि ‘शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं |’
प्रश्न-2 माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था ?

उत्तर- माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय इसलिए नहीं था, क्योंकि वह गरीब थी | उसके पास अपना कुछ भी नहीं था | दिन भर माटाखान से माटी लेकर टिहरी शहर में बेचते-बेचते बीत जाता था | अंधेरा होने तक वह घर पहुँचती थी तथा अपने और अपने बुड्ढे पति के लिए भोजन की व्यवस्था करती थी | बस यही उसकी रोज की ज़िंदगी थी |
प्रश्न-3  ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा’ से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- जब हम भूखे होते हैं, तो हमारा ध्यान मन पसंद और स्वादिष्ट भोजन की तरफ नहीं जाता, बल्कि हमें जो भी उपलब्ध हो जाता है, उसे ही खाकर पेट की भूख मिटा लिया करते हैं | वही भोजन हमारे लिए मिश्री के समान मीठा हो जाया करता है | यानी भूख स्वयं भोजन में मिठास पैदा कर देती है |
प्रश्न-4  ‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गयी चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता |’ – मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए |

उत्तर- उस घर की मालकिन को पीतल के बर्तन विरासत में मिले थे, जिसे वह बहुत सँभालकर रखी थी | उसे इस बात का एहसास था कि उसके पूर्वजों ने अपनी मेहनत की जमापूँजी से पीतल के बर्तन खरीदे होंगे | वैसे भी विरासत की चीज़ें अनमोल हुआ करती हैं, जिसे अपने पूर्वजों की निशानी के तौर पर हमेशा अपने पास रखने की कोशिश करना चाहिए | इसलिए मालकिन ने कहा कि ‘पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गयी चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता |’
प्रश्न-5 माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है ?

उत्तर-  माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी अत्यंत गरीबी को प्रकट करता है | उसे अपना और अपने बुढ़े पति दोनों का पेट भरना होता था | इसलिए किसी के घर में मिली रोटियों का वह हिसाब लगाती थी |
प्रश्न-6  ‘आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी |’ – इस कथन के आधार पर माटी वाली के ह्रदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए |

उत्तर- माटी वाली बुढ़िया की गरीबी का कोई सहारा नहीं था | बूढ़ा पति भी बीमार रहता था | दोनों का जीवन अाभावों में कट रहा था | उन्हें कभी मन पसंद अच्छा भोजन भी नसीब नहीं होता था | माटी बेचते-बेचते किसी घर से एक-दो रोटियाँ मिल जाती, तो बस गुजारा हो जाता था | परन्तु, एक दिन वह अपने पति के लिए तीन रोटियाँ ले जा रही थी | वह आमदनी के पैसे से एक पाव प्याज भी खरीदी और मन ही मन बोले जा रही थी कि आज वह अपने पति को रोटी के साथ सब्जी भी परोसकर देगी | आज उसके पति को रुखा-सूखा नहीं खाना पड़ेगा | इससे पता चलता है कि माटी वाली अपने पति के प्रति जिम्मेदार थी और उसका दिल से ख्याल रखती थी |
प्रश्न-7  गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए | इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए |

उत्तर – उस रोज जब माटी वाली अपने घर पहुँची, तो अपने बीमार बूढ़े पति को मृत अवस्था में पायी | वह अपने पति के अंतिम संस्कार की चिंता में बैठी थी, क्योंकि बाढ़ के कारण पूरा श्मशान पानी में डूब चुका था | अब तो उसके लिए उसका घर ही श्मशान के समान बन चुका था | इसलिए उस माटी वाली बुढ़िया ने कहा कि गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए |

माटी वाली पाठ का  शब्दार्थ

• कंटर –        बड़ा कढ़ाई, कनस्तर
• मुश्किल –    कठिन
• निगाह –      दृष्टि
• जायदाद –   सम्पत्ति
• एवज –       के बदले
• आपाधापी – भगदड़
• तमाम –       सभी |

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