मेरा गाँव

मेरा गाँव

भारत की ८५ % जनता गाँवों में रहती है . भारत की सच्ची तस्वीर गाँवों में ही देखी जा सकती हैं . हमारे कवियों ने गाँवों के अत्यंत लुभावने चित्र खींचें हैं . किसी ने उन्हें भारत की आत्मा कहा तो किसी ने देश का ह्रदय – स्पंदन . 
गाँव का मनोरम वातावरण – भारत के गाँव प्रकृति के झूले हैं . हरे – भरे खेत ,झूमती सरसों ,बरसता सावन ,खुली हवा ,सुगन्धित हवा के झोंके ,निर्दोष वातावरण ,प्रदूषण से मुक्त रहन -सहन .शांत मनोरम ऋतू चक्र ,कूकती कोयल ,नाचते मोर ,धन्य – धान से भरे खेत – खलिहान – यह है गाँव का मनोरम सत्य . इन बातों को देखकर प्रत्येक व्यक्ति का मन गाँवों में बसने को करता हैं . 

सामाजिक जीवन – 

मेरा गाँव
मेरा गाँव
गाँवों का सामाजिक जीवन और सांस्कृतिक जीवन भी अत्यंत मनोहारी है . यहाँ के निवासी स्वभाव से सरल – ह्रदय ,भोले और मधुर होते हैं . यही कारण है कि वे प्रकृति की हर लय पर नाचते – गाते और गुनगुनाते हैं .होली ,दीपावली ,तीज आदि त्योहारों पर ग्रामवासियों की मस्ती देखने योग्य होती हैं . 
ग्रामवासी भाईचारे के अटूट बंधन में बंधे होते हैं .इसीलिए वे एक दूसरे के दुःख -सुख में बढ़कर -चढ़कर हिस्सा लेते हैं .यहाँ की सामाजिक परम्पराएँ भी बहुत रंगीली हैं . विवाह की रस्में ,गीत ,विदा के क्षण ग्रामवासियों की भावुकता को प्रकट करते हैं . 

परिश्रमी जीवन –

 ग्रामीण जीवन परिश्रम का प्रतिक है . यहाँ निकम्मे ,निठल्ले व्यक्ति का क्या काम ? यहाँ के परिश्रमी किसान सारे देश के लिए अन्न उपजाते हैं और मजदूर लोग बड़े – बड़े भवन ,बाँध ,सड़क ,वस्त्र उद्योग आदि को चलाने में अपनी साड़ी ताकत लगा देते हैं .सच ही कहा है कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ने – 
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली.
नीले नभ में बादल काले, हरियाली में सरसों पीली.

यमुना-तीर, घाट गंगा के, तीर्थ-तीर्थ में बाट छाँव की. 
सदियों से चल रहे अनूठे, ठाठ गाँव के, हाट गाँव की .
                                    
शहरों को गोदी में लेकर, चली गाँव की डगर नुकीली.
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली.

खडी-खड़ी फुलवारी फूले, हार पिरोए बैठ गुजरिया.
बरसाए जलधार बदरिया, भीगे जग की हरी चदरिया.

तृण पर शबनम, तरु पर जुगनू, नीड़ रचाए तीली-तीली.
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली.

प्रगति में पीछे – 

भारत के गाँव बहुत सुन्दर होते हुए भी प्रगति की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं .यहाँ सड़कें ,स्वच्छ जल ,वैज्ञानिक सुख -साधन ,संचार व्यवस्था ,विकसित बाज़ार ,प्रगट शिक्षालय और अस्पताल नहीं हैं . यही कारण है की साड़ी सुन्दरता होते हुए भी वे उपेक्षित हैं . गाँवों को शहरों जैसा सुन्दर बनाने की चिंता किसी को नहीं हैं .

आशा की किरण – 

सौभाग्य से आज ग्रामीण जनता जाग उठी है . ग्रामीण प्रजा ने यह आवाज उठा दी है कि देश की प्रगति का केंद्र अब गाँव होना चाहिए .केन्द्रीय सरकार ने गाँवों की समृद्धि पर पर्याप्त राशि लगाने का निर्णय लिया है .यह शुभ चिन्ह है . आशा है कि शीघ्र ही गाँवों की धरती वैज्ञानिक सुख – साधन और उन्नत सुविधाओं से संपन्न होकर स्वर्गिक वन जायेगी . 

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