यह हकीकत है या फिर बेवफाई है

उतनी ही मेरी कमाई है


सुना है तुमने एक दुनिया बसायी है
यह हकीकत है या फिर बेवफाई है।।

यह सच है तो तुम्हारी 
हिम्मत को सजदे,
तुमने ख़ुदा की दुनिया में 
यह कैसी आग लगायी है।।

यह हकीकत है या फिर बेवफाई है

तेरे घर की गलियों से 
आज कोई शोर उठा,
किसी का घर जला है
किसी की आवाज आई है।।

हालात-ए-जिंदगी में
जब भी तुझे गलत समझा,
मुझे लगा यह मेरी 
मोहब्बत नही मेरी खताई है।।

मैं जिंदगी को जब भी 
मुड़ कर देखता हूं,
लगता है एक तरफ कुंआ
एक तरफ खाई है।।

अब मैं अपने आईने से
क्या गुजरूं दोस्तों,
मेरे चेहरे में अब
किसी और की परछाई है।।

जितना कमाता हूं 
उतने में अब खुश हूं ‘देव’,
ख़ुदा को सजदे 
बस उतनी ही मेरी कमाई है।।

कई जमानें रखता हूं

कुछ किताबें पढ़कर जब 
सिरहाने रखता हूं
अपनी उम्र के हिसाब से
कई फसानें रखता हूं।।

जहां खो गये हो तुम 
मुझे पता है लेकिन,
बस यादों में तेरे ठिकाने रखता हूं।।

कुछ रखूं या ना रखूं 
तेरी यादों की दास्तां,
तेरे कागज की नांव पुराने रखता हूं।।

भले ही आज मुझसे 
तेरा कोई इल्म नही,
मैं अपने गीतों में
बस तेरे तराने रखता हूं।।

मैं अपने गिरेबां में एक
चिराग जला लेता हूं,
मैं ख्यालों में तेरे कई खजानें रखता हूं।।

तेरी आंखों के सामने 
कई हुकूमते गुजरेगी,
मैं भी तेरे लिए कई उम्र 
कई जमानें रखता हूं।।


आवाज़ तोड़ता हूं

जब भी तेरे
ख्यालों से मेरा ख्याल गुज़रे
जब भी तेरे
नजरों से मेरा अक्स गुज़रे,
बंद हथेलियों में
तुम्हारी बेचैनी सख्त हो
अपनी रगों से धड़कनों की
रफ़्तार थाम लेना,
एक क्षण ही सही
मैं अर्थ में स्वर का
वर्ण छोड़ता हूं,
मैं जगह-जगह पत्थर से
आवाज़ तोड़ता हूं!

– राहुलदेव गौतम

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