रवींद्र कालिया नहीं रहे

रवींद्र कालिया नहीं रहे 

लीवर सिरोसिस की असाध्य बीमारी से सालों संघर्ष करने के बाद रवींद्र कालिया कल इस दुनिया में नहीं रहे. वे

रवींद्र कालिया

साठोत्तरी कहानी के एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि थे और एक प्रखर, नवोन्मेषी साहित्यिक सम्पादक के रूप में भी उनकी विशिष्ट पहचान थी. उन्होंने ‘काला रजिस्टर’, ‘नौ साल छोटी पत्नी’, ‘त्रास’ और ‘पनाह’ जैसी कहानियां लिखीं, जिन्हें हिन्दी कहानी की चर्चा में बार-बार याद किया जाएगा. उन्होंने हमें ‘खुदा सही सलामत है’ जैसा बड़ा और दीर्घजीवी उपन्यास भी दिया. ‘धर्मयुग’ से पत्रकारिता का जीवन शुरू करने के बाद कई पड़ावों से होते हुए उन्होंने ‘वागर्थ’ और फिर ‘नया ज्ञानोदय’ के प्रधान सम्पादक के रूप में अपना विशिष्ट स्थान बनाया. उनके सम्पादन में ये दोनों पत्रिकाएं युवा प्रतिभाओं के उभार का ऊर्जस्वित केंद्र बनीं. हिन्दी जगत में हलचल पैदा करनेवाली बहसों और चुहलबाज़ शैली वाले ‘ग़ालिब छुटी शराब’ जैसे संस्मरणों के लिए भी वे खूब चर्चा में रहे. एकाधिक अवसरों पर जलेस की उनसे गहरी असहमतियां भी रहीं. इसके बावजूद हम उनके लेखन और सम्पादन के महत्व को समझते रहे हैं.

रवींद्र कालिया के न रहने से हिन्दी ने अपने परिसर को लगातार जीवंत और आविष्ट बनाए रखने वाला एक साहित्यिक कार्यकर्ता खो दिया है. जनवादी लेखक संघ उनके प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है.

मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)
संजीव कुमार (उप-महासचिव)

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