वियोगी हरि का जीवन परिचय

वियोगी हरि जी का जीवन परिचय

वियोगी हरि जी का जीवन परिचय viyogi hari ka pura naam viyogi hari ki atmakatha ka naam वियोगी हरि की आत्मकथा – वियोगी हरि का पूरा नाम हरिप्रसाद द्विवेदी है .इनका जन्म सन १८९५ ई में छतरपुर (मध्य प्रदेश ) में कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता की मृत्यु के कारण इनका पालन पोषण ननिहाल में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई है। ये तत्कालीन छतरपुर की महारानी के विशेष कृपापात्र रहे। राजश्री टंडनजी के अनुरोध पर इन्होने कुछ समय तक हिंदी साहित्य सम्मलेन का प्रबंध संचालन किया तथा सम्मलेन पत्रिका का भी संपादन किया। इसके बाद ये वर्षों तक दिल्ली में हरिजन उद्योगशाळा का सञ्चालन का कार्य किया। इनका 
वियोगी हरि जी
वियोगी हरि जी 

सम्पूर्ण जीवन त्याग ,संयम तथा सेवामय रहा है। इन्हें वीर सतसई पर मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। सन १९३२ ई में ये गांधी जी के सम्पर्क में आये। तभी से आपने हरिजन तथा समाज के दलित वर्गों की सेवा का कार्य करना शुरू किया। आपका निधन सन १९८८ ई में हुआ।

आपकी रचनाएं विभिन्न पाठ्यक्रमों में पढाई जाती है। इन्होने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन ,प्राचीन कविताओं का संग्रह तथा संतों एवं योगियों की वाणियों का संकलन किया है। कविता ,नाटक ,गद्यगीत ,निबंध आदि के अतिरिक्त इन्होने बालोपयोगी साहित्य भी लिखा है। 

वियोगी हरि की भाषा शैली – 

इनकी सभी रचनाओं में सहृदयता तथा भावुकता के दर्शन होते हैं। इन्होने ब्रजभाषा तथा खड़ीबोली दोनों में साहित्य की रचना की है। इनके खड़ीबोली गद्य की विशेष रूप में दो शैलियाँ हैं – साहित्यिक तथा व्यावाहारिक। साहित्यिक शैली का प्रयोग अधिकतर गद्य काव्य में किया गया है। इसमें संस्कृत की तत्सम शब्दावली का बाहुल्य है।व्यावाहारिक भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग है। इनका गद्य काव्य भावात्मक शैली में लिखा गया है। गंभीर विषयों में इनकी शैली विचारात्मक है। इनके लेखों तथा निबंधों में इनकी शैली की विशदता स्पष्ट झलकती है। इन्होने दार्शनिक तथा सामाजिक विषयों पर भी निबंध लिखे हैं। भावना तथा अंतर्नाद में इनकी भावनात्मक शैली के दर्शन होते हैं। यह शैली भाषा पूर्णता ,मधुर शब्दावली रागात्मक व्यंजना के कारण विशेष चमत्कार पूर्ण है। 

वियोगी हरि की रचनाएँ – 

आपकी पचास से भी अधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है ,जिनमें से निम्नलिखित विशेष रूप से प्रसिद्ध है – 

  • काव्य – प्रेम शतक ,प्रेमांजलि ,वीणा ,प्रेम पथिक ,वीर सतसई ,मेवाड़ केसरी। 
  • गद्य काव्य – तरंगी ,अंतर्नाद ,प्रार्थना ,पगली। 
  • नाटक वीर हरदौल ,छद्मयोगिनी। 
  • आत्मकथा – मेरा जीवन प्रवाह। 
  • धार्मिक रचनाएं – मंदिर प्रवेश ,विश्व धर्म ,बुद्ध वाणी ,उद्यान ,भावना ,गांधी जी का आदर्श आदि। 

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