विश्व दुलारी बनती हिन्दी
(हिंदी दिवस पर विशेष लेख)
विश्व दुलारी बनती हिन्दी |
अक्सर अपमानित करने का पंथ दो लोग अपनाते हैं, एक तो वे जो स्वयं निरामूर्ख होते हैं, जिन्हें ज्ञात ही नहीं होता वे क्या कर रहे हैं या उनसे क्या करवाया जा रहा है, दूसरे वे व्यक्ति होते हैं, जो भयातुर होते हैं किसी आशंका को लेकर और उसी भयाक्रांत स्थिति के वशीभूत होकर अपमान करने जैसी प्रक्रिया करने के लिए बाध्य हो जाते हैं। हमारे यहां हिंदी दिवस उत्सवों को श्राद्धपक्ष से तुलना करने वाले लोगों की श्रेणी ऐसे ही अपमानपंथी जनों के अंतर्गत रखी जा सकती है। निःसंदेह वे हिंदी के निरंतर बढ़ रहे वैश्विक दुलार को लेकर भयातुर रहते हैं, कि इस अत्याधुनिक डिजिटल दौर में उनकी दृष्टि में सीधी-सादी हिंदी इंटरनेट पर विदेशी भाषाओं को टक्कर कैसे दे पा रही है। यह उनका भय ही है जो हिंदी के सोशल मीडिया पर बढ़ रहे लोकप्रिय आंकड़ों को देखकर अपनी आश्चर्यमिश्रित आंखों को फाड़ने से रोक नहीं पा रहा है। यह उनकी खीझ है, जो हिंदी की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हो रही वाहवाही से उनमें उत्पन्न हो रही है। इन समस्त दुर्प्रवृत्तियों के लिए एक ही सटीक उत्तर यह है कि जो सचमुच गुणसम्पन्न होता है, चाहे वो भाषा हो या व्यक्ति हो अपनी प्रतिभा का लोहा हर हाल में मनवा ही लेता है। हमारी दुलारी हिंदी ने भी यही किया है।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा |
का प्रयोग न हो रहा हो। ब्लॉग्स को लांघते हुए हिंदी फेसबुक और ट्विटर पर परचम लहरा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी काफी पहले से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंदी का उपयोग करता आ रहा है। हिंदी समाचारपत्रों की वेबसाइटों से देश-विदेश के करोड़ों पाठकों को हिंदी ने जोड़ा है। इंटरनेट पर हिंदी के बढ़ते प्रयोग का आंकलन करते हुए सर्च इंजन गूगल का अनुमान सामने आया है कि हिंदी में इंटरनेट पर जानकारियों को पढ़ने वाले लोगों की संख्या प्रति वर्ष 94 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। निकट भविष्य में ऐसा सुखद समय भी आ सकता है जब इंटरनेट पर हिंदी का उपयोग करने वालों की संख्या अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं के प्रयोक्ताओं से अधिक हो जाए। ऐसा इसलिए कह सकते हैं कि एक और अनुमान आंकड़ा सामने आया है जो दर्शाता है कि अंग्रेजी भाषा का उपयोग करने वालों की संख्या प्रतिवर्ष 17 प्रतिशत कम हो रही है। गूगल के अनुसार 2021 तक इंटरनेट पर 20.1 करोड़ लोग हिंदी का उपयोग करने लगेंगे। ऐसे ही आंकड़ों की सत्यता एक ओर जहां हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता की परिचायक है, वहीं प्रतिद्वंदिता की मानसिकता के शिकार भाषाकुंदों को हिंदी के तर्पण की निम्नता तक गिरते देखा जा सकता है। ये तो वे लोग हैं जो तर्पण की मूल अवधारणा को भी मनोरंजन के दायरों में रखते संकोच नहीं कर रहे हैं, जिनके लिए मृत पूर्वज महज दिवंगत देह से अधिक कुछ नहीं है, अन्यथा श्राद्ध परिहास का विषय तो कतई नहीं है और हिंदी दिवस समारोहों को श्राद्धपक्षीय अनुष्ठानों से जोड़कर हिंदी को मृतभाषा मानने वालों का उपचार असंभव है। अलबत्ता ऐसी निम्नसोच वालों से सच्चे हिंदी प्रेमियों को हृदयविदीर्ण होने की भी आवश्यकता नहीं है। बल्कि यह सोचकर और देखकर प्रसन्न अवश्य होना चाहिए कि आधुनिक डिजिटल दौर में कई ऐसे डिजिटल साधन उभरे हैं, जिनके कारण भारत के अहिंदीभाषियों और विश्व के कितने ही देशों के लोगों ने इनके माध्यम से हिंदी को सीखना आरंभ कर दिया है। हिंदी सिखाने वाले ऐसे एपों में ड्रॉप्स: लर्न हिंदी, डुओलिंगो, गूगल ट्रांसलेट, हेलोटॉक, लर्न हिंदी फ्री, मेमराइज़, मॉण्डली, रोज़ेट स्टोन, सिम्पली लर्न हिंदी, टेंडेम आदि एप काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। इनके अलावा भी सैकड़ों ऐसे मोबाइल एप आते जा रहे हैं, जिन्होंने हिंदी सीखने वाले वैश्विक विद्यार्थियों की संख्या बढ़ा दी है। भारत में भी तीव्रगति से मोबाइल इंटरनेट प्रयोगकर्ता बढ़ रहे हैं, जो हिंदी के विस्तार में बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। निःसंदेह वह दिन दूर नहीं जब हिंदी समस्त विश्व की दुलारी और प्यारी भाषा बनेगी।