वोटों की दुष्ट-नीति – महेन्द्र भटनागर की कविता

दलितों की गलियों से

कूचों और मुहल्लों से,
उनकी झोपड़पट्टी के
बीचोंबीच बनेनिकले
ऊबड़खाबड़, ऊँचेनीचे
पथरीलेकँकरीले सँकरे पथ से
निकल रहा है
दलितों का
आकाश गुँजाता, नभ थर्राता
भव्य जुलूस !

नहीं किराये के
गलफोडू नारेबाज़ नक़लची
असली है, सब असली हैं जी
मोटेताजे, हट्टेकट्टे
मुश्टंडेपट्ठे,
कुछ तोंद निकाले गोलमटोल
ओढे महँगेमहँगे खोल !

सब देख रहे हैं कौतुक
दलितों के
नंगधड़ंग घुटमुंडे
कालेकाले बच्चे,
मैली और फटी
चड्डीबनियानों वाले
लड़केफड़के,
झोंपडयों के बाहर
घूँघट काढ़े दलितों की माँबहनें
क्या कहने !
चित्रलिखीसी देख रही हैं,
पगपग बढ़ता भव्य जुलूस,
दलितों का रक्षक, दलितों के हित में
भरता हुँकारें, देता ललकारें
चित्र खिँचाता / पीता जूस !
निकला अति भव्य जुलूस !

कल नाना टीवीपर्दों पर
दुनिया देखेगी
यह ही, हाँ यह ही
दलितों का भव्य जुलूस !

अफ़सोस !
नहीं है शामिल इसमें
दलितों की टोली,
अफ़सोस !
नहीं है शामिल इसमें
दलितों की बोली !

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