साखी कबीर class 10

साखी कबीरदास class 10 

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साखी कविता का अर्थ कक्षा 10

(1)- ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ | 
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि हमें सदैव दूसरों के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए, जिससे उसे हमारी बातों या व्यवहार से किसी प्रकार का दुःख न पहुँचे | इससे हमारा मन भी शांत रहेगा और सुनने वाले को भी सुख और शान्ति की अनुभूति होगी | 
(2)- कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै बन माँहि | 
ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर ईश्वर के अस्तित्व और महत्ता को बताते हुए कहते हैं कि जिस तरह हिरन की नाभि में कस्तूरी होती है, किन्तु इससे अनभिज्ञ हिरन उसे पूरे जंगल में ढूँढ़ता फिरता है | ठीक उसी तरह ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के अंदर मौजूद है अर्थात् ईश्वर का वास तो कण-कण में है | परन्तु, मनुष्य ईश्वर को धार्मिक स्थलों में ढूँढ़ता-फिरता है | 
(3)- जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि | 
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर जी के द्वारा अंधकार की तुलना अंहकार से और ईश्वर की तुलना दीपक से किया गया है | आशय यह है कि जब मनुष्य के मन में अंधकार रूपी अहंकार होता है तब उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती | अर्थात् ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने अंदर के अंहकार को मिटाना पड़ता है | 
(4)- सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै | 
दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि संसार में जो लोग केवल खाने और सोने में ध्यान देते हैं, वे बहुत सुखी होते हैं | वे चिंतामुक्त जीवन जीते हैं | किन्तु, इसके विपरीत जो ईश्वर भक्ति में दिन-रात लीन रहते हैं, वे बहुत दुखी होते हैं | ईश्वर को पाने की उम्मीद में सदा चिंतित रहते हैं | 
कबीरदास
कबीरदास
(5)- बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ | 
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ | 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि राम रूपी ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रहता | यदि जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों के जैसी हो जाती है | अर्थात् मनुष्य अपना आत्म नियंत्रण खो बैठता है | ठीक उसी प्रकार, जब मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने का दुःख रूपी साँप बसता है, तो उसपर कोई मन्त्र या दवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता | 
(6)- निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ | 
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि यदि हमें अपना स्वभाव साबुन और पानी के बिना निर्मल करना हो तो निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखना चाहिए, ताकि हम उसके द्वारा अपनी बुराईयों को जानकर उसे दूर सकें | 
(7)- पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ | 
ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि दुनिया में बड़ी-बड़ी किताबों को सिर्फ पढ़कर मनुष्य पंडित नहीं बन सकता | कवि के अनुसार, मनुष्य का ईश्वर भक्ति में लीन होना उसके पंडित होने का प्रमाण है | अर्थात् कबीर कहते हैं कि ईश्वर ही एकमात्र सत्य है | ईश्वर को जाननेवाला ही वास्तविक ज्ञानी व पंडित कहलाता है | 
(8)- हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि | 
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि || 

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कबीर की साखी से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कबीर कहते हैं कि हमने मोह-माया रूपी घरों को जलाकर ज्ञान प्राप्त कर लिया है | अर्थात् अपने जीवन के अज्ञानता रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश में बदल दिया है | आगे कवि कहते हैं कि अब वो उनका भी मोह-माया रूपी घरों को जलाकर अपने साथ शामिल करेंगे, जो मोह-माया के बंधन से आजाद होना चाहते हैं | जो ज्ञान प्राप्त करने को इच्छुक हों | 

कबीरदास का जीवन परिचय 

कबीर  जी  का  जीवन  काल  1398 ई.  से  1518 ई.  तक  माना  जाता  है । लगभग  120  वर्ष  की  उम्र  इन्होंने  पाई । कबीर  जी  के  गुरु  रामानन्द  थे । ऐसा  माना  जाता  है  कि  कबीर  ने  अपने  जीवन  के  अंतिम  क्षणों  में  मगहर  में  बिताए  थे  तथा  वहीं  पर  चिरनिद्रा  में  लीन  हो  गए  थे । 
कबीर एक  क्रांतदर्शी  कवि  थे।उनकी  कविता  सामाजिक  चेतना  से  ओतप्रोत  है।उनकी  कविता  साधारण  प्रतीत  होते  हुए  भी  सहज  ही  मर्म  को  स्पर्श  करती  है  तथा  सबके  दिलों  को  छू  लेती  है । कबीर  एक  ओर  धर्म  के  बाहरी  दिखावे  पर  गहरी  और  तीखी  प्रहार  करते  नज़र  आते  हैं , तो  वहीं  दूसरी  ओर  आत्मा-परमात्मा  के  विरह-मिलन  के  भावपूर्ण  गीत  भी  गाए  हैं ।कबीर  जी  अनुभव   ज्ञान  को  अत्यधिक  महत्व  देते  थे । कबीर  का  मानना  था  कि  ईश्वर  एक  है, निर्विकार  है  तथा  अरूप  है। 
कबीर की  भाषा  पूर्वी  जनपद  की  भाषा  थी।कबीर  जी  ने  जनचेतना  और  जनभावनाओं  को  अपने  सबद  और  सखियों  के  माध्यम  से  जन-जन  तक  पहुंचाने  का  काम  किया  है । 


कबीर की साखी पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ या साखी कवि कबीर जी के द्वारा रचित है | इस पाठ की साखियाँ प्रमाण हैं कि सत्य की साक्षी देता हुआ ही गुरु शिष्य को जीवन के तत्वज्ञान की शिक्षा देता है | कवि कबीर अपने साखियों के माध्यम से सदैव दूसरों के साथ सद्व्यवहार करने की शिक्षा देते हैं, ईश्वर के अस्तित्व और महत्ता पर प्रकाश डालते हैं, मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते हैं, तो कभी कबीर कहते हैं कि ईश्वर को जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी व पंडित कहलाता है |

कबीर की साखी के प्रश्न उत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए — 

प्रश्न-1 मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है ? 

उत्तर- मीठी वाणी सदा सद्व्यवहार की निशानी होती है | मीठी वाणी बोलने से सामने वाले व्यक्ति के मन से क्रोध और घृणा के भाव समाप्त हो जाते हैं, जिससे उन्हें सुख की अनुभूति होती है | तत्पश्चात्, सामने वाले व्यक्ति के द्वारा सकारात्मक व्यवहार पाकर हमारे तन को शीतलता प्राप्त होती है | 
प्रश्न-2 दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है ? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ या साखी के अनुसार, दीपक से आशय ज्ञान से है | दीपक के प्रज्ज्वलित होने से अन्धकार समाप्त हो जाता है | अर्थात् जब ज्ञान रूपी प्रकाश हमारे अंदर प्रकाशमान होता है, तो निश्चित ही अंधकार रूपी अज्ञानता नष्ट हो जाती है | 
प्रश्न-3 ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ? 

उत्तर- ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे इसलिए नहीं देख पाते, क्योंकि हमारा मन अंहकार, अज्ञानता और आडंबर में डूबा है | कवि कबीर कहते हैं कि ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहीं, बल्कि कण-कण में विराजमान है | वो हमारे अंदर मौजूद है | जबकि हम ईश्वर को बाहर तलाशकर अपना समय व्यर्थ करते हैं | 
प्रश्न-4 संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- कवि कबीर के अनुसार, संसार में वे लोग सुखी हैं, जो समस्त सांसारिक सुखों का भोग करते रहते हैं | जबकि दुखी वे लोग हैं, जो ईश्वर भक्ति में लीन होकर जागते रहते हैं | कवि कबीर के अनुसार, यहाँ ‘सोना’ अज्ञानता का तथा ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है | 
इसका प्रयोग यहाँ इसलिए किया गया है, क्योंकि कवि कबीर के अनुसार, जो लोग अज्ञानी हैं और सोए हुए हैं, वे संसार में उपलब्ध सुख-सुविधाओं को ही वास्तविक सुख समझते हैं | जबकि ज्ञानी लोग ईश्वर भक्ति में लीन होकर जागते रहते हैं तथा वास्तविक ज्ञान ईश्वर को जनाना ही है | 
प्रश्न-5 कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ या साखी, जो कवि कबीर जी के द्वारा रचित है, इसकी भाषा ‘सधुक्कड़ी’ है | कबीर जी ने पंजाबी, अवधि, राजस्थानी, ब्रज आदि भाषाओं का मिश्रित प्रयोग किया है | तद्भव तथा देशी शब्द का भी प्रयोग हुआ है | कवि कबीर जी की साखियाँ जनमानस को जीने की कला सिखाने के साथ-साथ जीवनोपयोगी अद्भुत ज्ञान का प्रसाद बांटती है | प्रस्तुत साखी में जन साधारण की बोलचाल और सहज भाषा का प्रयोग किया गया है | 
भाषा अध्ययन
प्र. ६ पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए — उदाहरण − जिवै – जीना औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास। 

उत्तर- प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार – 
• औरन – औरों को
• माँहि – भीतर
• देख्या – देखा
• भुवंगम – साँप
• नेड़ा – निकट
• आँगणि – आँगन
• साबण – साबुन
• मुवा – मरा
• पीव – प्रेम
• जालौं – जलाऊँ
• तास – उस

कबीर की साखी का शब्दार्थ 

• मुवा – मर गया
• भया – हुआ
• अषिर – अक्षर
• पीव – प्रियतम या ईश्वर
• जाल्या – जलाया
• आपणाँ – अपना
• अरु – और
• बिरह – वियोग
• भुवंगम – साँप
• बौरा – पागल
निंदक – बुराई करने वाला
• नेड़ा – निकट
आँगणि – आँगन
• साबण – साबुन
• पाँणी – पानी
• निरमल – पवित्र
• सुभाइ – स्वभाव
• पोथी – ग्रन्थ
• मुराडा – जलती हुई लकड़ी
• जालौं – जलाऊँ
• तास का – उसका
• बाँणी – वाणी
• आपा – अहंकार
• सीतल – ठंडा
• कस्तूरी – एक सुगन्धित पदार्थ
• कुंडलि – नाभि
• माँहि – भीतर
• मैं – अंहकार
• हरि – भगवान
• मिटि – मिटना
• सुखिया – सुखी | 

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